आज फिर खाली हाथ चली आई शाम ,
कुछ रूठी सी लगी कुछ शरमाई शाम
आज फिर ..
कुछ यादे भी है और आवाज भी यहीं
बहती नदी सी अहसास ए तन्हाई शाम
आज फिर ...
नमी तो नमी बादल भी गरज रहे है
दिल की जमी पे बिखरी बलखाई शाम
आज फिर ...
पलको पे ख्वाब ठहरे औ साँसों में नाम
जिन्दगी कौन डगर तन्हा घबराई शाम
आज फिर ...
कुछ सहमे सहमे से लम्हे भी गुजरे है
साहिल को ढूंढती निगाह इधर आई शाम
आज फिर खाली हाथ चली आई शाम , ---- विजयलक्ष्मी
कुछ रूठी सी लगी कुछ शरमाई शाम
आज फिर ..
कुछ यादे भी है और आवाज भी यहीं
बहती नदी सी अहसास ए तन्हाई शाम
आज फिर ...
नमी तो नमी बादल भी गरज रहे है
दिल की जमी पे बिखरी बलखाई शाम
आज फिर ...
पलको पे ख्वाब ठहरे औ साँसों में नाम
जिन्दगी कौन डगर तन्हा घबराई शाम
आज फिर ...
कुछ सहमे सहमे से लम्हे भी गुजरे है
साहिल को ढूंढती निगाह इधर आई शाम
आज फिर खाली हाथ चली आई शाम , ---- विजयलक्ष्मी
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