Tuesday 24 March 2015

" वाह रे कलयुगी इंसान .....स्वारथ के धंधे सारे ".

" सच है ,सत्य लुभाता है ,मगर पेट झूठ से भर रहा है ,
शायद इसलिए... सत्य भी ...धीरे धीरे मर रहा है ".------ विजयलक्ष्मी


" चुभन शूलों की महक उसूलों की ,
अंधेरों की सियासत और षड्यंत्र सूरज को भी डूबने पर किया मजबूर 
खारा सा समन्दर रोकता है कबतक उजाले को आने से 
पाक दामन पर भी कोई नहीं चूकता दाग लगाने से 
उसपर नारी होना ...कुलक्षणी है ,कलकनी बदजात ..
कुछ बाकी बची तो तिरयाचरितर लिए होना ..
सुना है देव भी डरते थे उस रूप से ..
फिर भी देवी को ही संकट में पुकारते थे ....
वाह रे कलयुगी इंसान .....स्वारथ के धंधे सारे "...विजयलक्ष्मी 

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