" खो गयी सहर हमारी ,दीप अब बुझने लगे
कोशिशों के बाद भी ,डगर कुचली गयी
नयन नीर है मगर बंजर हुआ मन
आस अब कोई छूती नहीं अहसास को
दर्द बहता है नदी सा और गुल मुरझाये से
उसी में हम बैठे हुए है नहाए से
घरौंदा उजड़ा सा है खो गया मेरा पता
अब चहकते हुए पंछी नहीं भाते हमे
जल चुके है चिंगारी भी दिखती नहीं
बस बकाया ठंडी पड़ी सी राख है
महको तुम ,तुम्हारा जहां आबाद हो
हम बहुत है बरबादियों के साथ चलने को" - विजयलक्ष्मी
कोशिशों के बाद भी ,डगर कुचली गयी
नयन नीर है मगर बंजर हुआ मन
आस अब कोई छूती नहीं अहसास को
दर्द बहता है नदी सा और गुल मुरझाये से
उसी में हम बैठे हुए है नहाए से
घरौंदा उजड़ा सा है खो गया मेरा पता
अब चहकते हुए पंछी नहीं भाते हमे
जल चुके है चिंगारी भी दिखती नहीं
बस बकाया ठंडी पड़ी सी राख है
महको तुम ,तुम्हारा जहां आबाद हो
हम बहुत है बरबादियों के साथ चलने को" - विजयलक्ष्मी
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