Thursday, 18 December 2014

" मेरी वंश फसल में कल भी गीता रामायण ही विरासत होगी"

"अब पढ़ा जायेगा दर्द इबारत बनाकर 
फिर फैले होंगे हाथ इबादत बताकर 
फिर संगीने उगलेगी आग मेरे वतन की छाती पर 
कोई कोहराम यूँही देखेंगे सभी आदत बनाकर 
मोहताज लगने लगी दुनिया लहू की लहरों की 
रहेंगी यूँही रोएगे जबतक दहशतगर्दी को शाहदत बताकर
मर जाएगी इंसानियत सुबक कर देखा किये तमाशा
हथियार उठा खात्मे की गर नहीं इजाजत होगी
कभी मेरे हिन्दुस्तान की धरती लहू रंगती देख दुखी नहीं होते तुम
सोचकर देखना वही सूरतेहाल लिए सीरत की जलालत होगी
कुछ मासूम हुए शहीद तुम्हारी करनी पर ए जालिम
न सम्भल, जिन्दगी पनाह मांगेगी चमन में तेरे वो कौन हिमाकत होगी
जज्ब जज्बात इंसानियत के होते तो कुछ और बात रही होती
मेरी वंश फसल में कल भी गीता रामायण ही विरासत होगी"
---- विजयलक्ष्मी

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