Monday, 8 December 2014

.जल्दी वर ढूंढो इसका ब्याह कराओ

बेटी ने घर में कदम रखा ..लगा 
जैसे.. बहार आ गयी आंगन में 
जैसे ..कलियाँ चटकी हो अभी अभी 
जैसे ..नव किसलय नव प्रभात का आगमन हुआ हो 
जैसे .. मोर नाच उठे हो जंगल में 
जैसे ..फूलो पर तितलियाँ थिरक उठी हो
जैसे ..भंवरे स्वागत राग गुजार उठे हो
जैसे ..बांस की पोरी को बांसुरी बना सरगम नाच उठी हो
जैसे ..आम के वृक्षों पर बोर ने मिठास हवा में बिखेरी हो
जैसे ..मन का मोर जंगल में मंगल कर उल्लासित हो
जैसे ..चंद्रमा मेरी गोदी में गगन से उतर आया हो
जैसे दग्ध धरा को पहली बरसात से मिली राहत तपती गर्मी से
जैसे ..कुंकुनाती धुप भोर की सर्दी के मौसम में
जैसे ..दीप जला हो पूजा का तुलसी के बिरवे पर
जैसे ..अभी परियां उतरी हो आंगन में मेरे
उल्लास चेहरे पर मन में रागिनी सी
माँ की जिन्दगी ..जीवन की संगिनी सी
इत्तेफाक से पीछे से एक पड़ोसन भी चली आई कुछ लम्हों के बाद
बोली ..बेटी सयानी हो गयी क्यूँ नहीं उठाती इसकी डोली
छन छन नाचता मन मयूर सहरा सा हो गया पलभर में
मेरी नाजुक सी सलोनी कैसे कब हुई इतनी बड़ी
मेरी आँखों ने क्यूँ नहीं देखा ..
मन घबराया ...नजरो ने तौला ...होठो ने बोला ..इतनी जल्दी ?
बोली पड़ोसन ..दुनिया खराब है .. जबतक दूर थी ..तुम भी मजबूर थी
समझो ..सयानी होती बेटी दुनिया की आँखों में चुभती है
हर आने जाने वाली की निगाहों में खुटती है
उम्र कम भी नहीं ...
बेटी नादान और कमसिन भी सही है
नादानी में न आओ ...जल्दी वर ढूंढो इसका ब्याह कराओ
अपनी नजरो से नहीं दुनिया की नजर का चश्मा पहनो देखो गर देख पाओ
जमाने की हवा खराब है
दुसरे पड़ोसी के बेटे का खाना खराब है
तीसरे वाले घर की बेटी के पीछे लफंगे पड़े हैं
जानती भी हो नुक्कड़ की पान वाली दूकान पर लडके क्यूँ खड़े हैं
मेरी जान धक करके रह गयी ..जितनी ख़ुशी थी सब काफूर हुई
मैं भी बेटी के ब्याह की फ़िक्र में चूर हुई
कोई लड़का नजर में हो बताना ...
ठीक कमाता हो थोडा सयाना हो
दहेज की हिम्मत नहीं है
लडकी पढ़ी लिखी है ..गृह कार्य में दक्ष है ,,
सुंदर है सलोनी है .,,
वो बोली ...दूल्हा बिकता है यहाँ तो ...सीधा बोलो कौनसा खरीदोगी
.-- विजयलक्ष्मी

No comments:

Post a Comment