Sunday 21 December 2014

" रंगीन लिबासो में लिपटा सच चुभता नहीं है "

मार कर खुद को चलो जिन्दा हो जाते हैं ,,,
तोडकर पिंजरा छोडकर देह ... गगन में उड़ जाते हैं 
रूह बनकर इस दुनिया से गुजर जाते हैं 
करने दो इन्तजार दुनिया को ...हम फिर मिलने से मुकर जाते हैं 
जिन्दगी मुर्दों की बस्ती दफन है और हम जिन्दा से दीखते लोगो में मुर्दा 
चलो लाशो को खुला नहीं छोड़ा जाता ...सडन उठती है
नश्वर दुनिया का सच ........नग्न आँखों से देखो
रंगीन लिबासो में लिपटा सच चुभता नहीं है
अच्छा किया प्रभु .............आत्मा को अद्रश्य बना दिया तूने
यहाँ सबका ही मगर बाजार लीग दिया
तू डाल डाल तो पात पात है इंसान
उसने कुछ नहीं छोड़ा ....... तू भी नहीं मिलता किसी से
डर लगता है कही तुम्हे भी किसी ने तो नहीं चुरा लिया
----- विजयलक्ष्मी

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