" चुभन थी मीठी सी "
न
मौन रहा मेरा
न
शब्द हुए मेरे
दर्द
बिखरा सा
किसी डाली पर जीवन-वृक्ष की
किसी डाली
खुशबू खुशी की
उडती सी
मिलीं
कहीं
सिमटी हैं यादेँ
कहीं
अहसास बिखरे से
कभी
चोट फूलो से
जख्म
खारो के भले थे
महकते तो थे
चुभन
थी मीठी सी
तन्हा सा मौसम है
तन्हाई में ,,
संवरे ....!!
तो ..
क्यूँ संवरे ?"---- विजयलक्ष्मी
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