इस तरह अपनालो ,,
न जुदा रहूँ कभी ,
मुझे इस तरह डूबा लो
न सूख पाऊ कभी
स्नेहरस इतना बरसा दो
सहरा न बन पाऊ कभी
शूल बनू या पुष्प
बस महका करू हर कहीं
जिन्दगी की साँझ भी सहर सी लगे जो
जुदाई का कोई लम्हा तो टूट जाऊ तभी
ह्रदय की थाप संगीत बन गूंजती हो सदा
मिलने ऐसे प्रेम तरसता मिले खुदा
देह का नेह न हो नेह नेह का हो रहे
दूर हम कहाँ ...साथ इसतरह रहे
हम एक हो दो देह जैसे ..तटनी तट मिले
रात अमावस या पुरनम ,,
चाँद लाजमी खिले
मुझे दरिया सा बहाकर ..कुछ कमल से खिले हो
पंखुरियां जैसे भाव मन में खिले हो
न रंज हो कोई ..
चाहे तकदीर सो रही हो
अपने साथ प्रेम की भोर हो रही हो
गम के नजारे बंद हो दर्द भी पुष्प सा खिले
रक्त में हो आन शान ...मान भी मिले
तुम खुदा ...कह दिया
तुम बुततराश हो ,,
तराश दो मुझे इस तरह की तू ही साथ हो
क्या माँगना किसी और से ...तुमसे ही मांग लू
छीन लो मुझे मुझ से ही ..मैं तुमसे तुम्हे ही मांग लू
मैं तुम्हे तुमसे ही मांग लू " --- विजयलक्ष्मी
न जुदा रहूँ कभी ,
मुझे इस तरह डूबा लो
न सूख पाऊ कभी
स्नेहरस इतना बरसा दो
सहरा न बन पाऊ कभी
शूल बनू या पुष्प
बस महका करू हर कहीं
जिन्दगी की साँझ भी सहर सी लगे जो
जुदाई का कोई लम्हा तो टूट जाऊ तभी
ह्रदय की थाप संगीत बन गूंजती हो सदा
मिलने ऐसे प्रेम तरसता मिले खुदा
देह का नेह न हो नेह नेह का हो रहे
दूर हम कहाँ ...साथ इसतरह रहे
हम एक हो दो देह जैसे ..तटनी तट मिले
रात अमावस या पुरनम ,,
चाँद लाजमी खिले
मुझे दरिया सा बहाकर ..कुछ कमल से खिले हो
पंखुरियां जैसे भाव मन में खिले हो
न रंज हो कोई ..
चाहे तकदीर सो रही हो
अपने साथ प्रेम की भोर हो रही हो
गम के नजारे बंद हो दर्द भी पुष्प सा खिले
रक्त में हो आन शान ...मान भी मिले
तुम खुदा ...कह दिया
तुम बुततराश हो ,,
तराश दो मुझे इस तरह की तू ही साथ हो
क्या माँगना किसी और से ...तुमसे ही मांग लू
छीन लो मुझे मुझ से ही ..मैं तुमसे तुम्हे ही मांग लू
मैं तुम्हे तुमसे ही मांग लू " --- विजयलक्ष्मी
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