Saturday, 8 November 2014

" बंटवारा ..."

न जाने क्यूँ 
ये दुनिया 
हिस्से बहुत बांटती है 
गर 
कभी ...
मन हो
तुम्हारा भी 

बंटवारा करने का 
सुनो ,
जर जमीं 

कैसे क्या करना
तुम जानो 

मेरी ..
इतनी सी गुजारिश है 

तुमसे 
याद से
मुझे
अपने हिस्से में रख लेना -- विजयलक्ष्मी 

1 comment:

  1. वाह ...कितनी ही बेहतरीन कलम

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