न जाने क्यूँ
ये दुनिया
हिस्से बहुत बांटती है
गर
कभी ...
मन हो
तुम्हारा भी
बंटवारा करने का
सुनो ,
जर जमीं
कैसे क्या करना
तुम जानो
मेरी ..
इतनी सी गुजारिश है
तुमसे
याद से
मुझे
अपने हिस्से में रख लेना -- विजयलक्ष्मी
ये दुनिया
हिस्से बहुत बांटती है
गर
कभी ...
मन हो
तुम्हारा भी
बंटवारा करने का
सुनो ,
जर जमीं
कैसे क्या करना
तुम जानो
मेरी ..
इतनी सी गुजारिश है
तुमसे
याद से
मुझे
अपने हिस्से में रख लेना -- विजयलक्ष्मी
वाह ...कितनी ही बेहतरीन कलम
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