Friday, 21 November 2014

" सुन्दरता ..? "

" सुन्दरता
किसी को गुल नहीं भाते 
किसी को कांटे भी सुहाते है 
इसलिए 
कुछ लोग बबूल को नहीं काटते
कुछ घरो में नागफनी उगाते है 
सुन्दरता 
चेहरे में होती गर चाँद बेगाना ही लगता 
सुबह सहर का ठंडा सूरज दिन दुपहरी न जलता 
सुन्दरता 
बगिया में रहती क्यूँ गमले सजते 
कोई कोई मेहँदी से क्यूँ दिल नहीं रंगते 
सुन्दरता 
महलों में रहती गर झुग्गी वीरानी होती 
न हंसी गूंजती कभी न वीरानी महलो में रोती 
सुन्दरता 
आँखों में रची और बैठी दिल में आन 
इसीलिए रंग रूप रहता नहीं है भान 
सुन्दरता 
चंचल होती गर बिजुरी क्या कम थी 
रूह न चलती छोड़ देह क्यूँ अंखिया नम थी
सुन्दरता 
छिप गयी ममता और प्रेम के आंचल में 
रुनझुन बजती पायलिया के मीठे लगते नगमे "--- विजयलक्ष्मी 

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