Saturday, 9 January 2016

" सरहद पर खड़े हर जवान को नमन है ,,"

हम चैन से सोते हैं तभीतक ..
जबतक सरहद पर खड़ा है इक इक सिपाही निगेहबानी करता है,,
जबतक लड़ता है बर्फीली हवाओ से सियाचिन की पहाड़ियों में ,,
जबतक खड़ा सहरा की तपती धूप आग उगलते सूरज के सामने
जबतक भीगता है बेमौसम बारिशों में होकर तरबतर
जबतक उठती है उसके मन में ज्वाल वतन की तुफाँ बनकर
जबतक सीने पर गोली खाने की आरजू डराती नहीं उसको
जबतक माँ की ममता सरहद तक पीछा करती है
जबतक सिंदूर सुहागन के हाथों में नहीं कंपकंपाता
जबतक बहना के हाथों की राखी से विश्वास नहीं मिट जाता
जबतक नन्हे बच्चे सेना की कसम उठाते हैं ..
जबतक पिता के सीने सेना का नाम से नहीं डर जाते
जबतक कुछ कर गुजरने चाहत में है
जबतक वतन पर मरमिटने की कुव्वत जेहन में है
जबतक शहीदों के किस्से बहते हैं लहू में
जबतक जिन्दगी को खिलौना बनाकर समर्पण की तमन्ना दिल में है
जबतक वेतन पर नहीं मुहब्बत ए वतन दिल पर तारी है
जबतक तिरंगे की शान जिन्दगी से ज्यादा प्यारी है
जबतक वतन की माटी सिंदूर पर भारी है
जबतक अहसास जिन्दा हैं ...
कभी कहकर देखो किसी नेता बने किस्मत के हेटे को
कोई तो भेजकर देखे कभी अपने भी बेटे को
कैसे धडकता है दिल पठानकोठ को सुनकर
कैसे फडकता है लहू कारगिल की चोट को धुनकर
सरहद पर खड़े हर जवान को नमन है ,,
उन्ही की बदौलत वतन वतन है और जिन्दा हम हैं
जयहिंद जयहिंद की सेना ||"
---- विजयलक्ष्मी


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