आप सबने कलैंडर बदल लिया होगा अपनी दीवार पर ...मुझे अभी बदलना बाकी है ....क्या करूं .... तारीख के साथ तिथियाँ भी चाहिए न.... और वो अभी तक नहीं लिया .. उलटे कुछ सवाल उठते गिरते रहे भीतर.......... कुछ औरों की वाल पर भी मिले..... सोचा आपसे भी शेयर करने चाहिए ..... सोचकर देखिये आप भी ...सम्भव है हम गलत सोच बैठे हो ..... पर दिमाग तो अपना कम करता ही रहता है न....
अब जरा पढिऐ HAPPY NEW YEAR हमारे साथ फिर दुबारा ( वास्तविक) मना लेना |
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1. ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन |
2. जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है इस बात पर भी गौर करें..
3 . सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ, 8वाँ, नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है | ये क्रम से 9वाँ,10वाँ,11वां और बारहवाँ महीना है ..
अब जरा संस्कृत की गिनती याद कीजिये .. सात को सप्त, आठ को अष्ट कहा जाता है, इसे अग्रेज़ी में sept (सेप्ट) तथा oct (ओक्ट) कहा जाता है ...इसी से september तथा October बना ..नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अंग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे December बन गया .. इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था।
सोचिये .... 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है????
अब गौर कीजिये .... "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना .. दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया ..
अगर इन्ही बातों को ऐसे माने तो ----
कि अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था ..साल को 365 के बजाय 305 दिन का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है ..
लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू..
भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।
इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़ अपना तारीख या दिन 12 बजे रात से बदल देते है ..
दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है ??
भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और हमारे यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है..
अर्थात करीब 5-5.30 के आस-पास और इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है। चूंकि वो भारत का प्रभाव था अत: अपना दिन भी भारतीयों से मिलाकर रखना चाहते थे ..इसलिए उन लोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया ..
हम क्या कर रहे हैं ....अनुसरणकर्ता का अनुसरण मतलब दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं..
कुछ तो लोचा है कहीं न कहीं पर ...हमारा ज्ञान हमारे पोथी पत्रे ...सब उच्च कोटि के हैं |
खुद को पहचानों
🎉हम,,,"" भारत गुरु है .......और अन्य जन गुरु का अनुसरण करते हैं और करना भी चाहिए ...अपने नववर्ष का गौरव बढाइये .... आपका अपना भी गौरव बढ़ेगा | ""
🎉हम,,,"" भारत गुरु है .......और अन्य जन गुरु का अनुसरण करते हैं और करना भी चाहिए ...अपने नववर्ष का गौरव बढाइये .... आपका अपना भी गौरव बढ़ेगा | ""
" कलैंडर बदल रहा है ...
कोरा सा सुंदर साफसुथरा ,,
खोलकर टांग दिया ,,
सूरज के साथ शुरू होगी कलम की रोशनाई ,,
मन की रौशनी में पढना ..
हर निशाँ जिन्दगी के कदमों का पता देता है ,,
कुछ चुपचाप से...कुछ चीख चीखकर सुनाते हैं ,,
कुछ कान बहरे हो चुके ,,
कुछ बहरे होने की तरफ उन्मुख है,,
जागो..नहीं तो पीढ़ियाँ खो जायेगीं ..जिंदगियां सो जाएगी ,,
और नया दिन नया बरस कैसे देखोगे बदलते हुए
और तुम्हे भी बधाई मन की गहराइयों से
आसमा के उस छोर पर टंगी है
चाँद के दामन में बिखरी चांदनी की आँखों की चमक में
बढकर थाम लो हर ख़ुशी"
---- विजयलक्ष्मी
" वो लम्हे हसीं थे जब साथ था ,,
वो लम्हे खूबसूरत रहेंगे जब जब साथ होगा ,,
वो लम्हे और भी लाजवाब होंगे जब हरसू अहसास होगा ..
और मोमबत्ती बन जला करूं ..
हर लम्हा हर पल ,,
रौशनी की जद्दोजहद में ,,
अँधेरा शाश्वत भी हो तो क्या ..
अभी हार नहीं मानी
नित्य रार नई ठानी
समझा इतनी ही है जिंदगानी"
---- विजयलक्ष्मी
"नये साल के दामन में ख़ुशी लिपटी मिले ,,
और आँख में चमकते सितारों से सपने ..
खिलखिलाकर मिले गले हरइक लम्हा ..
बस यही आरजू थी यही आरजू रहेगी ,,
नववर्ष मंगलमय हो ,",
और आँख में चमकते सितारों से सपने ..
खिलखिलाकर मिले गले हरइक लम्हा ..
बस यही आरजू थी यही आरजू रहेगी ,,
नववर्ष मंगलमय हो ,",
--------- विजयलक्ष्मी
" कलैंडर टंगा है अभी भी उसी दीवार पर ,,
टंगा था एक बरस पहले जहां ..
याद दिलाता था भुलिबिसरी सी दास्ताँ
उसपर लगे स्याही के निशान बताते थे हमे
कुछ छुट्टियां दिखती बन बच्चो की ख़ुशी
प्रेस के कपड़ो का हिसाब ,,दूध की गिनती ..
अखबार की अनुपस्थिति कुछ जन्मदिन कुछ सालगिरह
जीवन पूरे कर चुके दादा जी की तिथियाँ
बीमार दादी की दवाई लाने की तारीख
चाचा चाची की शादी का दिन ,,
मुन्नी के स्कूल की छुट्टियां
पप्पू के आने में बचे दिन
बेटी के ब्याह के महीने ..
बुआ को राखी भेजने की याद कराने की तारीख
गैया के बियाने की सम्भावित तारीख़
नानी के घर जाने का हिसाब
नवरात्र शिवरात्रि दर्शाती होली और दीवाली
कभी गुरु गोविन्दसिंह की याद ,,
कभी ईद की छुट्टी का निशान ,,कभी गुरुग्रंथ साहिब की अकीदत
पडोस में होने वाली रामायण और सुखमणी जी का पाठ ..
कुछ आवश्यक फोननम्बर थामे टंगा रहा मुस्तैद
जाने अनजाने देखते पढते मिलने के पल
जुड़ गयी थी जैसे जिन्दगी हर पल
इसे भी बदलना होगा बदलती तारीख के साथ ,,
गुजरते साल से कलैंडर की तरह ही गुजरना है हमे भी
दादा मामा की तरह लिखी जाएगी मेरी भी तारीख
किसी को सुख देगी किसी को आंसू ..,,छोड़ जाएगी कुछ अहसास
साल दर साल बदलते कलैंडर पर ..
कुछ खो जाएँगी कुछ स्मृति चिन्ह सी चलती चलेंगी
साल का आखिरी दिन ..
और ..बदल जायेगा ये कलैंडर भी दीवार से
उसी कील पर नया कलैंडर ,,जैसे बदल रहा है वस्त्र समय भी
यादों के झरोखों से झाँकने को मजबूर करते लम्हे
गुजर रहे हैं एक एक कर आँखों की गली से होकर || "
------- विजयलक्ष्मी
टंगा था एक बरस पहले जहां ..
याद दिलाता था भुलिबिसरी सी दास्ताँ
उसपर लगे स्याही के निशान बताते थे हमे
कुछ छुट्टियां दिखती बन बच्चो की ख़ुशी
प्रेस के कपड़ो का हिसाब ,,दूध की गिनती ..
अखबार की अनुपस्थिति कुछ जन्मदिन कुछ सालगिरह
जीवन पूरे कर चुके दादा जी की तिथियाँ
बीमार दादी की दवाई लाने की तारीख
चाचा चाची की शादी का दिन ,,
मुन्नी के स्कूल की छुट्टियां
पप्पू के आने में बचे दिन
बेटी के ब्याह के महीने ..
बुआ को राखी भेजने की याद कराने की तारीख
गैया के बियाने की सम्भावित तारीख़
नानी के घर जाने का हिसाब
नवरात्र शिवरात्रि दर्शाती होली और दीवाली
कभी गुरु गोविन्दसिंह की याद ,,
कभी ईद की छुट्टी का निशान ,,कभी गुरुग्रंथ साहिब की अकीदत
पडोस में होने वाली रामायण और सुखमणी जी का पाठ ..
कुछ आवश्यक फोननम्बर थामे टंगा रहा मुस्तैद
जाने अनजाने देखते पढते मिलने के पल
जुड़ गयी थी जैसे जिन्दगी हर पल
इसे भी बदलना होगा बदलती तारीख के साथ ,,
गुजरते साल से कलैंडर की तरह ही गुजरना है हमे भी
दादा मामा की तरह लिखी जाएगी मेरी भी तारीख
किसी को सुख देगी किसी को आंसू ..,,छोड़ जाएगी कुछ अहसास
साल दर साल बदलते कलैंडर पर ..
कुछ खो जाएँगी कुछ स्मृति चिन्ह सी चलती चलेंगी
साल का आखिरी दिन ..
और ..बदल जायेगा ये कलैंडर भी दीवार से
उसी कील पर नया कलैंडर ,,जैसे बदल रहा है वस्त्र समय भी
यादों के झरोखों से झाँकने को मजबूर करते लम्हे
गुजर रहे हैं एक एक कर आँखों की गली से होकर || "
------- विजयलक्ष्मी
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