Saturday, 9 January 2016

" तिरंगा भरकर कलम में सारे जहाँ में फहरा दो"

" वही कलम झूठ की पाबन्द होती जो बिक चुकी होती है,,
कठपुतली किसी दौलतमंद के हाथो बन चुकी होती है,,
इतिहास को उजागर करती है शहंशाहों की गुलाम होकर
राणा प्रताप को त्याग बताती है अकबर क्यूँ महान था..
क्यूंकि मीना बाजार लगाता था ...या ख़ूबसूरती को नजर ....

जोधा से विवाह ये कैसा प्रेम था सियासी जजिया कर लगता था

राणा की आजादी जिसे रास नहीं आई ...
राणा वही राणा देशप्रेम में घास की रोटी तलक खायी..
एश औ आराम क्या कम थे ... जिन पूर्वजो ने धर्म न बदला..
उनपर सितम क्या कम थे ...जिन्हें वतन रहा प्यारा उन्हें आजादी की चाह,,
मणि शंकर अय्यर को देख लो दौलत औ सत्ता की राह ,
एक गोधरा को गाते है सभी ...
कितने मारे थे साबरमती के डिब्बे की आग में बताओ क्या बताते है कभी
इक अखलाख का रोना रोया खूबजमकर ,,
क्या हुआ काश्मीर ..मालदा औ पूर्णिया में मिडिया उस समय सोया जमकर
क्या जरूरत है भला एसी कलम की ,,,
खोले बैठी है मण्डी शहीदों के कफन की
रोना है गर हर बच्चे की भूख पर रोते
बांटते न धर्म की बिना पर ,,, आतंकवाद पर चुप नहीं होते
जयहिंद जयहिंद के नारे से गगन गूंजा दो
तिरंगा भरकर कलम में सारे जहाँ में फहरा दो"
------ विजयलक्ष्मी



" झूठ उगलते चौथे स्तम्भ की बात
दोगले हुए स्वार्थी औलाद की बात
मालदा में करें या पूर्णिया की बात
ईमान को मापे या असहिष्णु सौगात
बदलते पहलू की या प्यार जो बरबाद

मरती इंसानियत औ जहरीली बात
माँ को डायन कह खंजर घोंपती बात
आतंकी जनाजे के पीछे इंसाफ की बात
जहाँ दूष्मन के घर बैठ होती सत्ता की बात
वंदेमातरम जहाँ फतवों में दब गया
करो तुम भी उसी लकीर के फकीर की बात
या जिंदगी जिंदा होती है जहाँ मरकर
शहादत पर कसम उठती है जान देने की
आन पर मान पर प्राण देने की बात
कर सको गर करो हिंदुस्तान की बात "
--- विजयलक्ष्मी

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