कुण्डलिया छंद दोहा और रोला के संयोग से बना छंद है. इस छंद के 6 चरण होते हैं तथा प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है. इसे यूँ भी कह सकते हैं कि कुण्डलिया के पहले दो चरण दोहा तथा शेष चार चरण रोला से बने होते है. दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में 13-13 मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं. रोला के प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती है. रोला में यति 11वी मात्रा तथा पदान्त पर होती है. कुण्डलिया छंद में दूसरे चरण का उत्तरार्ध तीसरे चरण का पूर्वार्ध होता है. कुण्डलिया छंद का प्रारंभ जिस शब्द या शब्द-समूह से होता है, छंद का अंत भी उसी शब्द या शब्द -समूह से होता है. रोला में 11 वी मात्रा लघु तथा उससे ठीक पहले गुरु होन आवश्यक है . कुण्डलिया छंद के रोला के अंत में दो गुरु, चार लघु, एक गुरु दो लघु अथवा दो लघु एक गुरु आना आवश्यक है.
शब्द या शब्द समूह
दण्ड के अंत में 21 है
दण्ड आख़री शब्द नहीं हो सकता
अंत में
22
या
112
या
211
या
1111
होना चाहिए ||
"ज्ञान कुपड्धों या अल्पज्ञानी विवेकहीन के विकृत हो जाता है ...दृष्टांत कब दुष्टान्त में बदल जाता है पता ही नहीं चलता ...हिन्दुओं के 33 कोटी देवी देवता हैँ , इसको मूर्खों /कुपड्धों ने प्रचारित किया कि हिन्दुओं में 33 करोड़ देवी -देवता हैं । यहाँ "कोटि" का अर्थ है "प्रकार"। देवभाषा संस्कृत में "कोटि" के दो अर्थ होते है, कोटि का मतलब "प्रकार" होता है और एक अर्थ "करोड़" भी होता। हिन्दू धर्म का दुष्प्रचार करने के लिए ये बात उडाई गयी की हिन्दुओ के 33 करोड़ देवी देवता हैं और अब तो मुर्ख हिन्दू खुद ही गाते फिरते हैं की हमारे 33 करोड़ देवी देवता हैं...वास्तव में हिन्दू धर्म में कुल 33 प्रकार के देवी देवता का ही वर्णन है जो इस तरह वर्गीकरण (प्रकार ) में हैं --
प्रथम 12 प्रकार हैँ --- आदित्य , धाता, मित, आर्यमा, शक्रा, वरुण, अँश, भाग, विवास्वान, पूष, सविता, तवास्था, और विष्णु...!
द्वितीय 8 प्रकार हैं --- वासु:, धर, ध्रुव, सोम, अह, अनिल, अनल, प्रत्युष और प्रभाष ... और
तृतीय 11 प्रकार है :- रुद्र: ,हर, बहुरुप, त्रयँबक, अपराजिता, बृषाकापि, शँभू, कपार्दी, रेवात, मृगव्याध, शर्वा, और कपाली।
दो प्रकार हैँ अश्विनी और कुमार।
इस तरह कुल 12+8+11+2=33 कोटि यानी प्रकार हुए ."
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