" भोर का सूरज भारत के प्रकाशरश्मियों को और अधिक कीर्तिवान बनाने की राह पर अग्रसरित है ....भारत का योग अंतर्राष्ट्रीय आसमान पर अपनी चमक को और भी अधिक प्रकाश से प्रकाशित करेगा ...और सार्थक करेगा ,,भारत विश्वगुरु बनने की राह पर अपने कदम क्रमशः बढ़ा रहा है | शुभकामनाओ सहित भारतीय संस्कृति के अनुगामी सभी भारतीयों को बधाई .... ...स्वस्थ भारत .... विकासोन्मुख भारत ||" ------ विजयलक्ष्मी
" आओ मिलकर योग का विरोध करें ,,
विरोध करे स्वास्थ्य का अपने
विरोध करें मेडिकल के खर्च का अपने
विरोध करें लम्बी उम्र का ..अनुरोध करें मृत्यु शीघ्र का
विरोध करें जीवन की जरूरियात का
विरोध करें करें तो दिन और रात का
विरोध करे ढलती साँझ उगते प्रात का
विरोध करें जिन्दगी के स्वास का
विरोध करें जीवन आस का
विरोध करें मन के विकास का
विरोध करें निरोगी तन की आस का
विरोध के स्वर हो इतने मुखर गूंजे दूर तक
जा पहुंचे धरती से दूर सूरज चंदा के छोर तक
गगन के किनारे रोये सरे सितारे ...
गमकना कान्ति देह का बहुत बुरा है यार
मिटना क्लेश भ्रान्ति उससे बुरा है यार
बस बचा आजकल एक ही उपाय ...
करें विरोध गूंजे स्वर जन्नत के द्वार तक
फिर वही एक नारा हो जाए
देख लेंगे सूरज को भी रौशनी ले जाए
न बरखा हो धरा पर तो क्या हुआ ...
हमारा प्यारा "शांति धर्म " अँधेरे में रह जाये ......
आइये न मानिए घाटे में रहेंगे
पागल नहीं हुए अभी जो योग की कहेंगे
उपयोग कीजिये विरोध कीजिये मत इस्तेमाल निरोध कीजिये
क्या हुआ धरा जो कम पड़ जाये किसी दिन
बस एक बात मानिये ---
बकरी जगह बच्चे की बली दीजिये अपनी ईद की इदी से फिर मजे लीजिये
आओ मिलकर योग का विरोध करें ,,
विरोध करे स्वास्थ्य का अपने
विरोध करें मेडिकल के खर्च का अपने
विरोध करें लम्बी उम्र का ..अनुरोध करें मृत्यु शीघ्र की
विरोध करें जीवन की जरूरियात का
विरोध करें करें तो दिन और रात का "-------- विजयलक्ष्मी
पंतजलि ने योगदर्शन में, जो परिभाषा दी है 'योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः', चित्त की वृत्तियों के निरोध = पूर्णतया रुक जाने का नाम योग है। इस वाक्य के दो अर्थ हो सकते हैं: चित्तवृत्तियों के निरोध की अवस्था का नाम योग है या इस अवस्था को लाने के उपाय को योग कहते हैं।
(१) पातंजल योग दर्शन के अनुसार -
योगश्चित्तवृत्त निरोधः ---------- चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है।
(२) सांख्य दर्शन के अनुसार -
पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते। -------- पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है।
(३) विष्णुपुराण के अनुसार -
योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने।--------- जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है।
(४) भगवद्गीता के अनुसार -
सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते ।----- दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है।
(५) भगवद्गीता के अनुसार -
तस्माद्दयोगाययुज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्। ------- कर्त्तव्य कर्म बन्धक न हो, इसलिए निष्काम भावना से अनुप्रेरित होकर कर्त्तव्य करने का कौशल योग है।
(६) आचार्य हरिभद्र के अनुसार -
मोक्खेण जोयणाओ सव्वो वि धम्म ववहारो जोगो। --------मोक्ष से जोड़ने वाले सभी व्यवहार योग है।
(७) बौद्ध धर्म के अनुसार -
कुशल चितैकग्गता योगः। ------------कुशल चित्त की एकाग्रता योग है।
सच बोलूँ तो ..योग मतलब शरीर को मन को अधिक समय तक खुद को युवा रखने का साधन ..मतलन मृत्यु देर में आएगी ..बिमारियां दूर रहेंगी याने डॉक्टर पर होने वाले खर्च में कटौती ..
संहारक शक्तियों की पराजय ... ॐ का उच्चारण स्वांस को नियंत्रित करने में सहायक है ..जिससे स्वर साधने में भी सरलता महसूस देती है ....साँस को यदि प्रकृति से मिला लिया जाये तब प्रगट होते है चमत्कार ...मसलन अमरता की तर्ज र आयु का सैकड़े में पार करना |
राक्षसी प्रवृत्ति वाली भूख को भी नियंत्रित किया जा सकता है और शरीर की उर्जा का संरक्षण भी किया जा सकता है ,,,यही है योग
योग द्वारा जीवन के हर दिशा और दशा के आनन्द में वृद्धि कीजिये | ----- विजयलक्ष्मी
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