Monday 8 June 2015

" और वक्त की आंख में डालकर आँख आइना बन जाओ "

कैफियत न पूछ दिल के हाल बुरे है ,,
हम भूलते नहीं उन्हें वो याद नहीं करते 
जिन्दा हैं बता देना ए हसरत उनको 
बात इतनी सी हम फरियाद नहीं करते
--- विजयलक्ष्मी



न द्वंद है न कोई विरोधाभास है ,
धरती गगन का आपसी विश्वास है 
हरित है धरती क्यूंकि प्रकाश है 
धरती के परीत: पसरा आकाश है
--- विजयलक्ष्मी


सुबह सवेरे भोर हुए सूरज उग आया खिड़की पर बोला उठ जाओ 
जागो खोल आँख जीवन पथ पर आगे और आगे बढ़ जाओ 
वीर बनो कायरता का बाना न खुद ओढो न भविष्य को उढाओ 
समय ठहरता कब है जो तुम ठहर गये .. सोच समझ कर बतलाओ 
क्रांति की भ्रान्ति नहीं मशाल न जल सके गर कोई इक दीप ही जलाओ 
झूठ दिखावे की दुनिया में कभी तो सत्य के चेहरे को भी सामने लाओ
छल प्रपंच को छोड़ उतारो झूठ से बना बुरका सत्य से पर्दा उठाओ
कब तलक ठहरे रहोगे मन बीथि में लगे विचारों के जाम में कदम आगे बढाओ
नव पल्लव सम नवप्रभात के नव सूरज सा प्रथम कदम आगे बढाओ
बीनकर दीप से जलते सितारे अँधेरे के आंचल में सजा नव गीत गाओ
पुष्प से खिलकर मन सुगंधी को जीवन पथ पर महकाओ ..
और वक्त की आंख में डालकर आँख आइना बन जाओ
----- विजयलक्ष्मी


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