Friday 11 September 2015

" खिलखिलाते हैं वही महफिल में काँटों से बिंधे हैं जो "

" दिल की लगी से हम भी जरा दिल्लगी कर लेते हैं ,
गुनगुनाकर मुहब्बत जिन्दगी में रंग भर लेते हैं.
" ---- विजयलक्ष्मी





" हमने सुना,भीड़ में रहते हैं वही तन्हाई में रंगे हैं जो ,
खिलखिलाते हैं वही महफिल में काँटों से बिंधे हैं जो
" --- विजयलक्ष्मी





" ओ गमों की दुनिया के शहंशाह, जरा ठहर ,जमी की बात कर,
मुस्कुराकर निकलते है वही ...गमो की कमी नहीं जिनके घर
" .---- विजयलक्ष्मी




No comments:

Post a Comment