" सर पे टोपियाँ रखकर टोपी पहना रहे हैं लोग ,
ईमा खो चुका जिनका मुलम्मा चढ़ा रहे हैं लोग
कितना भरोसा रखे वतन वाले इन नदीदों का
वतनपरस्ती की आड़ में दुश्मनी निभा रहे हैं लोग
समभाव मरता दिखे क्यूँ अमरनाथ की राह पर
कोई तो बढ़कर बताओ वहां क्यूँ पत्थर बरसा रहे हैं लोग
सुना है सवाब का महिना रमजान होता है ,,
कोई बताये फिर क्यूँ मन्दिर ढहा रहे हैं लोग
शायद इंसानियत इन्सान के भीतर से मर गयी
इसीलिए धर्म के नामपर बंदूकें उठा रहे हैं लोग "------ विजयलक्ष्मी
ईमा खो चुका जिनका मुलम्मा चढ़ा रहे हैं लोग
कितना भरोसा रखे वतन वाले इन नदीदों का
वतनपरस्ती की आड़ में दुश्मनी निभा रहे हैं लोग
समभाव मरता दिखे क्यूँ अमरनाथ की राह पर
कोई तो बढ़कर बताओ वहां क्यूँ पत्थर बरसा रहे हैं लोग
सुना है सवाब का महिना रमजान होता है ,,
कोई बताये फिर क्यूँ मन्दिर ढहा रहे हैं लोग
शायद इंसानियत इन्सान के भीतर से मर गयी
इसीलिए धर्म के नामपर बंदूकें उठा रहे हैं लोग "------ विजयलक्ष्मी
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