"यूँ नजरों में बसा बैठे पंछी की उड़ानों को |
मेरे मन को छूना है सूरज के ठिकानों को ||
मेरे मन को छूना है सूरज के ठिकानों को ||
वो भी पत्थर लिए बैठे हैं बाँध के हाथो को |
आँख टूटता देखे कैसे शीशे के मकानों को ||
आँख टूटता देखे कैसे शीशे के मकानों को ||
तुम बदरा संग खूब उड़े भीगी बरसातों में |
मन-डोर बंधी अपनी तारों की मचानो को ||
मन-डोर बंधी अपनी तारों की मचानो को ||
वो उडती पतंगों सा मन लहक लहक जाये |
अहसास की खुशबू में पर्दादारी जुबानों को ||
अहसास की खुशबू में पर्दादारी जुबानों को ||
क्या परखें दुनिया को चुप रहना अच्छा है |
रूह परखे रहमत को क्या देखे बयानों को || " ----- विजयलक्ष्मी
रूह परखे रहमत को क्या देखे बयानों को || " ----- विजयलक्ष्मी
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