सत्य कटु होता है ,
पूरा ही जीने दे सदैव ..जरूरी नहीं ,
कभी कभी बाँट देता है दो टुकडो में ...
क्या जन्म और क्या समापन ...वक्त है ये ..
सुना था योद्धा पंचांग नहीं बांचते ...
हाँ वक्त ऐसा ही योद्धा है ...सबके बांचे गए पंचांग ...पलट देता हैं पल में ,
और चल देता सब समेट कर अपने बाहुबल में ,,,
सत्य बदलता नहीं फिर झूठ साबित हों जाता है ...
सत्य बोलना और सत्य में जीना ....क्या सम्भव है ?
सत्य बदलता कब है
पूरा ही जीने दे सदैव ..जरूरी नहीं ,
कभी कभी बाँट देता है दो टुकडो में ...
क्या जन्म और क्या समापन ...वक्त है ये ..
सुना था योद्धा पंचांग नहीं बांचते ...
हाँ वक्त ऐसा ही योद्धा है ...सबके बांचे गए पंचांग ...पलट देता हैं पल में ,
और चल देता सब समेट कर अपने बाहुबल में ,,,
सत्य बदलता नहीं फिर झूठ साबित हों जाता है ...
सत्य बोलना और सत्य में जीना ....क्या सम्भव है ?
सत्य बदलता कब है
,...
ये खेला है जीवन ,सब नश्वर मगर सबसे पहले जाना है खुद मुझको ..
दुनिया मिटेगी नहीं ..
पौधे गमलों के सूख जाते है निरंतरता के बिन मगर ...
जंगली पौधे मनमौजी से मरते नहीं ,कई बार उखाडो जमीं से तब भी ,
बरसात के इन्तजार करते हैं ,
सोखते है धरा से जल और लड़ते ही रहते हैं जीवन भर ...
बाकी सब तो चलता ही रहेगा ...जीवन जीना जो ठहरा ...
गगन धरा मिल गए उस छोर जहाँ कोई नहीं मिलता .- विजयलक्ष्मी
ये खेला है जीवन ,सब नश्वर मगर सबसे पहले जाना है खुद मुझको ..
दुनिया मिटेगी नहीं ..
पौधे गमलों के सूख जाते है निरंतरता के बिन मगर ...
जंगली पौधे मनमौजी से मरते नहीं ,कई बार उखाडो जमीं से तब भी ,
बरसात के इन्तजार करते हैं ,
सोखते है धरा से जल और लड़ते ही रहते हैं जीवन भर ...
बाकी सब तो चलता ही रहेगा ...जीवन जीना जो ठहरा ...
गगन धरा मिल गए उस छोर जहाँ कोई नहीं मिलता .- विजयलक्ष्मी
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