शब्द जीवन डोर थामे हों ,
रिश्ते कोमल से कच्चे धागे हों ,
जब जीवन बनी एक आस हों ,
शब्द जीवन के खुद के अहसास हों ..
दूरियों में नजदीकियों कि दरयाफ्त हों ,
जीवन खेला जीवन के साथ है ,
कलम जब करती बात है ,
शब्द बोलते हों कानों से गुज उतर कर भीतर मन के ..
बस यही है करतब हैं शायद इस कलम से ..--विजयलक्ष्मी
रिश्ते कोमल से कच्चे धागे हों ,
जब जीवन बनी एक आस हों ,
शब्द जीवन के खुद के अहसास हों ..
दूरियों में नजदीकियों कि दरयाफ्त हों ,
जीवन खेला जीवन के साथ है ,
कलम जब करती बात है ,
शब्द बोलते हों कानों से गुज उतर कर भीतर मन के ..
बस यही है करतब हैं शायद इस कलम से ..--विजयलक्ष्मी
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