Saturday 24 November 2012

रंग ए नूर दमकता है अहसास ए वफा में ...

नागफनी ही हूँ यही वजूद का रंग है मेरे ,
जड़े भीतर जमीं के खुद से ज्यादा ऊपर परम्परागत काँटे मेरे .
मुझे बंगले के गमले में भी रोपा तुमने ,
मगर सीरत न बदली दर्द दिया ,ओस की बूंदों को छुए जो काँटे मेरे.- विजयलक्ष्मी



वक्त की बेरुखी भी मंजर खूबसूरत कर देती है ,
ये जिंदगी जब हर लम्हे को इबादत में बदल देती है.- विजयलक्ष्मी



अस्तित्व की पहचान उस राह पर क्यूँ भला ,,
जहाँ रंग ही बदलता है प्रीत के रंग से ..
रंग ए नूर दमकता है अहसास ए वफा में ,,
लगन होती है ...जीतने की उसके ढंग से .- विजयलक्ष्मी

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