Friday, 23 November 2012

बुत में देखकर आब और ख्वाब ,,होता है हैरान क्यूँ ?

सृजन पर अक्सर जमाना उठता है सवाल क्यूँ ,
वक्त को देखकर होता है खड़ा बवाल क्यूँ ,
बपौती है ये कुछ लोगों की बता सकते हों क्या ,
हर सरकारी मुलाजिम के माथे पे लगता रिश्वत का टीका क्यूँ 

बंगलों के पौधों से दुश्मनी रखने वालों नहीं है हक जिंदगी का उन्हें क्यूँ ,
माना मुट्ठीभर आसमां नहीं हिस्से में उड़न पर उठते है सवाल क्यूँ ,
पिंजरे की मैना के बोलने पर भी होता अविश्वास क्यूँ ,
क्या धुरंधर बाज और गिद्ध ही है गगन के 
बिन पंख की उड़ान पर खड़ा मिलता सवाल क्यूँ ,
सीमा पे खड़ा जो ,, परम्पराओं के घरौंदे से दिखता हैरान क्यूँ .
बुत में भी देखकर आब और ख्वाब ,,होता है हैरान क्यूँ .-विजयलक्ष्मी

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