हम निगहबानी में हैं जाने किस किस की ,
मेरी दहलीज पे जलते दिए दूर तलक रोशन दिखते हैं .
बैठने दे अंधेरों में ही बिसात ए शतरज न समझ ,,
बहुत है जिन्हें हर रोज जलते दिए अखरते हैं .- विजयलक्ष्मी
रिश्ते कागज के, क्या सच है इनमे खुशबू नहीं ?
बेख़ौफ़ जी लेने दे मुझे इनको मुरझाने का भी डर नहीं .- विजयलक्ष्मी
वक्त ने जब भी खंजर उठाया मेरी जानिब,,,
और भी करीब से देखा है ए जिंदगी तुझको .- विजयलक्ष्मी
नजरों की जबाँ के सब हर्फ सीखने की कोशिश थी ,
दुनिया ही भूल गए उन नजरों में ऐसी कशिश थी .- विजयलक्ष्मी
मेरी निगाहों से मेरे दिल कि बात मुश्किल में आ न जाना ,,
आम बात है गुलों के बगीचे के बीच सहरा सा मंजर नजर आना .विजयलक्ष्मी
ताज को निशाँ ए मुहब्बत न कहना ,,
जाने कितना लहू बहा है इसे बनाने में ,,
सब दुआएं ही हों मुश्किल कहना है ,,
बद्दुओं का हश्र ए सिला बुरा बुतखाने में .- विजयलक्ष्मी
यूँ आजमाने की कोशिश, माटी का पुतला माटी को देखने की चाह लिए ,
ताज खड़ा है मुर्दा सा दामन में अपने जाने कितनी मुहब्बतों की आह लिए .- विजयलक्ष्मी
मेरी दहलीज पे जलते दिए दूर तलक रोशन दिखते हैं .
बैठने दे अंधेरों में ही बिसात ए शतरज न समझ ,,
बहुत है जिन्हें हर रोज जलते दिए अखरते हैं .- विजयलक्ष्मी
रिश्ते कागज के, क्या सच है इनमे खुशबू नहीं ?
बेख़ौफ़ जी लेने दे मुझे इनको मुरझाने का भी डर नहीं .- विजयलक्ष्मी
वक्त ने जब भी खंजर उठाया मेरी जानिब,,,
और भी करीब से देखा है ए जिंदगी तुझको .- विजयलक्ष्मी
नजरों की जबाँ के सब हर्फ सीखने की कोशिश थी ,
दुनिया ही भूल गए उन नजरों में ऐसी कशिश थी .- विजयलक्ष्मी
मेरी निगाहों से मेरे दिल कि बात मुश्किल में आ न जाना ,,
आम बात है गुलों के बगीचे के बीच सहरा सा मंजर नजर आना .विजयलक्ष्मी
ताज को निशाँ ए मुहब्बत न कहना ,,
जाने कितना लहू बहा है इसे बनाने में ,,
सब दुआएं ही हों मुश्किल कहना है ,,
बद्दुओं का हश्र ए सिला बुरा बुतखाने में .- विजयलक्ष्मी
यूँ आजमाने की कोशिश, माटी का पुतला माटी को देखने की चाह लिए ,
ताज खड़ा है मुर्दा सा दामन में अपने जाने कितनी मुहब्बतों की आह लिए .- विजयलक्ष्मी
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