Tuesday, 6 November 2012

वीराना कविता कहता है खुद में ...

हर रंग कविता कहता है अपने ढंग की .. 
किसी को रोने में सुनती ,किसी के हंसने में होती ...
जीवन के रंगों में काली लकीरे भी कविता सी सजती 
शब्दों की अन्तरध्वनियाँ रच जाती हैं एक नई कविता फिर फिर 
जीवन के हर रंग में डूबी है कविता ....
अहसासों का मुर्दाघर भी तो कविता कहता है 
इन्द्रधनुष सा हर रंग कविता है खुद में ...
ममता का आंचल भी कहता है कविता ,बहन का ख्वाब भाई की कविता ही तो है 
खून शिराओं से चल कर 
दिल तक आता है सच है ...
बनता है उन्वान तो लिखते है कविता ...
कभी राग रंग कविता लगता है सबको ..
कभी आंसूं की धार लिखे कविता ..
किस लम्हे को कह्दूं कविता नहीं नहीं मेरी ...
जिसको जो रंग लगे प्यारा उसे कविता कहते है..
छू जाये आँखों को मन को बहती अहसासों की नदी को कविता ही कहते हैं ..
तलवार की धार भी कविता है कविता है ,
छोटी सी कटार भी कविता है ...
विषदंत जीवन की अंतिम कविता कहता है ...
करूँण प्रलाप, आहत मन की आहट का आलेख भी कविता है ..
वीराना कविता कहता है खुद में...
गर सुन सको ,....खुद में खुद का होना भी.... कविता है ... --विजयलक्ष्मी

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