" बहुत अजब गजब घटना घट रही है हिंदुस्तान में ,,
फ्लैट उग रहे है ,,सोसाइटी उग रही है ..
बाजार उग रहे हैं मॉल उग रहे हैं साथ में ..
गेहूं नहीं उगता ..चावल नहीं उगता छप्पर नहीं उगता छान में
धरने उगते हैं ,,कालाबाजारी उगती है
एनजीओ उगते हैं हिदुस्तान में ...
सेवा नहीं उगती ..वृक्ष नहीं उगते ..दाल सब्जी उगने लगे रासायनिक खाद में
गोबर भी गायब ..दूध सिंथेटिक हुआ ..
बिल्डर्स उग गये है राजनैतिक मकान में
सब कुछ उग सकता है ...भूख तो सदा से उगती रही शान में
किसान अमीर न हुआ आजतक भी ,,
दलाल ,,आढतिये ,,बिचौलिए और नेता खड़े हैं रईसी शान में
उद्योग को बंद रहने दो ,,नदी मत साफ होने दो ..
विकास की गाडी पटरी पर चढ़ गयी अगर ...एनजीओ निठल्ले बैठ जायेंगे
लोग खुश होंगे ...मगर एनजीओ वाले गरीब रह जायेगे
फिर धरने के लिए नये बहाने कहाँ से आयेंगे
बहुत अजब गजब घटना घट रही है हिंदुस्तान में ,,
फ्लैट उग रहे है ,,सोसाइटी उग रही है ..
बाजार उग रहे हैं मॉल उग रहे हैं साथ में
गेहूं नहीं उगता ..चावल नहीं उगता छप्पर नहीं उगता छान में
धरने उगते हैं ,,कालाबाजारी उगती है
बस एनजीओ उगते हैं हिदुस्तान में " ... .----- विजयलक्ष्मी
" चलो सब बंद करके धरना देते हैं ..
हम कोई नेता नहीं कोई अभिनेता या समाजसुधारक नहीं हैं
अजी बात सच ये भी वो भी कोई विचारक नहीं है
कोई एक मुद्दा उठाया जनता के बेच उधम मचाया
कुछ दिन पिकनिक सी मनाई और लौट गये घर
नहीं समझे न ....कैसे समझोगे ..मतदाता बन चुके हो सब ..
कोई भाजपा का कोई कांग्रेस का ..कोई कम्युनिस्ट है कोई है अंधभक्त आ आपा का
नागरिक बनो ,, नागरिक बनोगे तो जिम्मेदार बनोगे ,,
न काम त्यागोगे
न मुफ्त की मांगोगे
भिखारी नहीं बनोगे ,,
मेहनत करोगे
आगे बढोगे ,,
कटोरा लिए मुफ्त की आदत जबसे लगी है ..
मुसीबत नागरिको की बढ़ी है
याद रखना कुछ मुट्ठीभर चंद सरफिरे गद्दीनशीं न होने पाए
अपनी मेहनत की रोटी में सुकून है
धरने की नीति छुट्टी करने की नीति
सडक बंद परेशान हैं नागरिक
मगर परम्परा बन चुकी पारम्परिक
जिसे नाम कमाना हो ,,
मिडिया से थोडा दोस्ताना हो
कुछ अच्छे पिछलगू दोस्तों से याराना हो
जिसे कुछ किये बिना नाम कमाना हो
जिस अख़बार में सुर्खिया पाना हो
चले आओ जन्तर मन्तर चलो ...या रामलीला मैदान में घर बना लो
चलो सब बंद करके
धरना देते हैं ..
हम कोई नेता नहीं कोई अभिनेता या समाजसुधारक नहीं हैं
अजी बात सच ये भी वो भी कोई विचारक नहीं है
कोई एक मुद्दा उठाया जनता के बेच उधम मचाया
कुछ दिन पिकनिक सी मनाई और लौट गये घर "--- विजयलक्ष्मी
फ्लैट उग रहे है ,,सोसाइटी उग रही है ..
बाजार उग रहे हैं मॉल उग रहे हैं साथ में ..
गेहूं नहीं उगता ..चावल नहीं उगता छप्पर नहीं उगता छान में
धरने उगते हैं ,,कालाबाजारी उगती है
एनजीओ उगते हैं हिदुस्तान में ...
सेवा नहीं उगती ..वृक्ष नहीं उगते ..दाल सब्जी उगने लगे रासायनिक खाद में
गोबर भी गायब ..दूध सिंथेटिक हुआ ..
बिल्डर्स उग गये है राजनैतिक मकान में
सब कुछ उग सकता है ...भूख तो सदा से उगती रही शान में
किसान अमीर न हुआ आजतक भी ,,
दलाल ,,आढतिये ,,बिचौलिए और नेता खड़े हैं रईसी शान में
उद्योग को बंद रहने दो ,,नदी मत साफ होने दो ..
विकास की गाडी पटरी पर चढ़ गयी अगर ...एनजीओ निठल्ले बैठ जायेंगे
लोग खुश होंगे ...मगर एनजीओ वाले गरीब रह जायेगे
फिर धरने के लिए नये बहाने कहाँ से आयेंगे
बहुत अजब गजब घटना घट रही है हिंदुस्तान में ,,
फ्लैट उग रहे है ,,सोसाइटी उग रही है ..
बाजार उग रहे हैं मॉल उग रहे हैं साथ में
गेहूं नहीं उगता ..चावल नहीं उगता छप्पर नहीं उगता छान में
धरने उगते हैं ,,कालाबाजारी उगती है
बस एनजीओ उगते हैं हिदुस्तान में " ... .----- विजयलक्ष्मी
" चलो सब बंद करके धरना देते हैं ..
हम कोई नेता नहीं कोई अभिनेता या समाजसुधारक नहीं हैं
अजी बात सच ये भी वो भी कोई विचारक नहीं है
कोई एक मुद्दा उठाया जनता के बेच उधम मचाया
कुछ दिन पिकनिक सी मनाई और लौट गये घर
नहीं समझे न ....कैसे समझोगे ..मतदाता बन चुके हो सब ..
कोई भाजपा का कोई कांग्रेस का ..कोई कम्युनिस्ट है कोई है अंधभक्त आ आपा का
नागरिक बनो ,, नागरिक बनोगे तो जिम्मेदार बनोगे ,,
न काम त्यागोगे
न मुफ्त की मांगोगे
भिखारी नहीं बनोगे ,,
मेहनत करोगे
आगे बढोगे ,,
कटोरा लिए मुफ्त की आदत जबसे लगी है ..
मुसीबत नागरिको की बढ़ी है
याद रखना कुछ मुट्ठीभर चंद सरफिरे गद्दीनशीं न होने पाए
अपनी मेहनत की रोटी में सुकून है
धरने की नीति छुट्टी करने की नीति
सडक बंद परेशान हैं नागरिक
मगर परम्परा बन चुकी पारम्परिक
जिसे नाम कमाना हो ,,
मिडिया से थोडा दोस्ताना हो
कुछ अच्छे पिछलगू दोस्तों से याराना हो
जिसे कुछ किये बिना नाम कमाना हो
जिस अख़बार में सुर्खिया पाना हो
चले आओ जन्तर मन्तर चलो ...या रामलीला मैदान में घर बना लो
चलो सब बंद करके
हम कोई नेता नहीं कोई अभिनेता या समाजसुधारक नहीं हैं
अजी बात सच ये भी वो भी कोई विचारक नहीं है
कोई एक मुद्दा उठाया जनता के बेच उधम मचाया
कुछ दिन पिकनिक सी मनाई और लौट गये घर "--- विजयलक्ष्मी
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