Thursday, 12 February 2015

"कुछ अहद हो सच्चे से कुछ दोस्ती गहरी "

" मेरी जरूरत में तुम्हारी जेब बेमतलब,
मेरी ख्वाहिश है नाम लेने की इजाजत ||

क्या करना दुनियावी दौलत का भला
मेरी ख्वाहिश याद करने की इजाजत ||

पत्थर के महलों में ,,महरूम खुदा गर
मेरी ख्वाहिश इक तस्वीर की इजाजत ||

शिलालेख उकेरा है कलम ने खुदा की
मेरी ख्वाहिश इक तहरीर की इजाजत ||

कुछ अहद हो सच्चे से कुछ दोस्ती गहरी
कुछ यादे ठहरी ,,और मुसलसल इबादत ||
" ---- विजयलक्ष्मी





" कुरेद लेते हैं जख्मों को आप ही सी भी लेते हैं ,
सहरा हो या दरिया प्यास को ही पी भी लेते हैं ||

गुल उजाड़े माली गर आबाद गुलिस्ताँ हो कैसे 
पतझड़ के मौसम में बिन बारिश जी ही लेते हैं ||

गिरते टूटकर जो पत्ते बरसती ओस उनपर भी 
समेटकर दर्द,, दागों के साथ भी जी ही लेते हैं ||

गर खुद नहीं जिन्दा ,,खुदा की खुदाई हो कैसे 
बरसते अहसास के बादल पीकर भी जी लेते है ||

धरा पर लहू नहीं पानी से फसल उगनी चाहिए 
पसीना मेहनत का सच्चे सपूत बहा ही देते हैं || "------  विजयलक्ष्मी 

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