" ठीक हो न तुम "
पूछना चाहती थी
लेकिन ..
जुबाँ उठती नहीं
शब्द जैसे ठहर जाये है जिह्वा पर
आवाज रुंध जाती है ..
और ..
पाते हैं मोहताज सा खुद को
सूख जाती है जुबाँ जैसे सदियों की प्यासी हो
नमी आँखों की छलक उठती है
लेकिन ..
जैसे खो जाने का डर पसर जाता है
मायूस होकर ..
समन्दर की लहरों का आलम देखकर
शब्द नौका समा जाती है उन्ही लहरों में
क्या मालूम ?
कौन जाने जवाब मिले न मिले ?
कशमकश !!
गूंजता रहता है खुद में ही सवाल ..
फिर एक ही जवाब उभरा ..
तेरी सांसे जिन्दगी का सबूत दे रही है न ..बस .
लेकिन ..
चाहकर भी नहीं पूछ पाना
पूछना तो चाहती हूँ .. बार बार तुमसे
" ठीक हो न तुम "| --- विजयलक्ष्मी
पूछना चाहती थी
लेकिन ..
जुबाँ उठती नहीं
शब्द जैसे ठहर जाये है जिह्वा पर
आवाज रुंध जाती है ..
और ..
पाते हैं मोहताज सा खुद को
सूख जाती है जुबाँ जैसे सदियों की प्यासी हो
नमी आँखों की छलक उठती है
लेकिन ..
जैसे खो जाने का डर पसर जाता है
मायूस होकर ..
समन्दर की लहरों का आलम देखकर
शब्द नौका समा जाती है उन्ही लहरों में
क्या मालूम ?
कौन जाने जवाब मिले न मिले ?
कशमकश !!
गूंजता रहता है खुद में ही सवाल ..
फिर एक ही जवाब उभरा ..
तेरी सांसे जिन्दगी का सबूत दे रही है न ..बस .
लेकिन ..
चाहकर भी नहीं पूछ पाना
पूछना तो चाहती हूँ .. बार बार तुमसे
" ठीक हो न तुम "| --- विजयलक्ष्मी
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