Monday 1 September 2014

" सच का दुश्मन झूठ का पुलिंदा है आदमी "

माचिस न जला बेकार हो चुकी ,
आजकल आदमी से जलता है आदमी ||

शर्मसार है नाग भी देखकर इंसान
अब तो आदमी को डसता है आदमी ||

तू मन मैला कर न कर फर्क नहीं
कालिख भीतर बसाए घूमता है आदमी || 

जहर देने की जरूरत खत्म हुई 
भीतर जहर उठाये फिरता है आदमी ||

इंसानियत का जनाजा खूब उठा यारा
सच का दुश्मन झूठ का पुलिंदा है आदमी || ------ विजयलक्ष्मी 

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