सुना है चाँद को नुमाइन्दगी ए मुहब्बत
श्वेत वर्णा चांदनी भी दाग न छिपा सकी ||
श्वेत वर्णा चांदनी भी दाग न छिपा सकी ||
चुभन हुई पलक पर आँख में स्वप्न सी
नदी बन संवरी, खारापन न मिटा सकी ||
नदी बन संवरी, खारापन न मिटा सकी ||
भूख मिली बिखरी मुखिया के द्वार पर
करोड़ो डकारे गये ,,गरीबी न हटा सकी ||
करोड़ो डकारे गये ,,गरीबी न हटा सकी ||
इज्जत औ इजाजत को गुलाम न समझ
नियत का खोट तेरी ,बाते न समा सकी ||
नियत का खोट तेरी ,बाते न समा सकी ||
ईमान दिखाने को नहीं निभाने की बात है
तेरे झूठ की नदी,, किनारे न बना सकी ||
तेरे झूठ की नदी,, किनारे न बना सकी ||
मांगता न सबूत कभी तू खुद को भी आँक
झूठ की झड़ी जमीर की भूख न मिटा सकी ||
झूठ की झड़ी जमीर की भूख न मिटा सकी ||
पद-गरिमा का बखान शोभा नहीं देता
अपनी करनी तेरी फजीहत बचा न सकी ||
अपनी करनी तेरी फजीहत बचा न सकी ||
जिसकी सरकार "अच्छे दिन " पूछता फिरे
कितना ईमान बाकी है आइना न दिखा सकी ||-- विजयलक्ष्मी
कितना ईमान बाकी है आइना न दिखा सकी ||-- विजयलक्ष्मी
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