Wednesday, 15 February 2017

जिन्दगी जिन्दा रहती है जमीर से ,,

जिन्दगी जिन्दा रहती है जमीर से ,,
राजनीति जमीर खा रही है आजकल ||

जरा देश से मुहब्बत करके तो देखिये
मुहब्बत ही गोते खा रही है आजकल ||

भूख खड़ी ही मिली बेहया सी खेत में
दूध,इक वक्त में माँ बिक रही है आजकल||

बड़ी मीठी सी महक है गाँव की गली की
शहर की सडक महक खा रही है आजकल ||

यहाँ देह को गिनता ही कौन है इश्क में
वफा भी आत्मा को मना रही है आजकल ||

प्रदेश की कसौटी पर भी नशा चढा मिला
शराबी की संगत ढूंढ रही है आजकल ||

स्वार्थपूर्ति में नेता करते मिले कमाल
जनता हर ढंग में कट रही है आजकल ||

दागियों ने मन्त्र फूंक दिया है इसतरह
झूठ की चादर ईमान बनी है आजकल ||

न्याय बिका गाँधी की तस्वीर टांगकर
जानवर तक ख़ुदकुशी कर रहे हैं आजकल ||

ज्योति देशप्रेम की बुझ-बुझकर जल रही
देशद्रोही टोली भी मत मांग रही है आजकल ||
---- विजयलक्ष्मी

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