हर झूठ सफेद हुआ तुम्हारे मुख से निकलकर ,,
कभी सत्य को अपनाओ , झूठ से निकलकर || विजयलक्ष्मी
गजल हो या लतीफा क्या खूब हुनर है ,,
वो संगदिल दुनिया का बड़ा बाजीगर है || ---- विजयलक्ष्मी
रोने में भी लुत्फ मिलेगा कैसे किसी को ऐसे ,
क्या मंजूर होंगे दिल के रिश्ते किसी को ऐसे ।। ------ विजयलक्ष्मी
मालूम न था ,कोई है जो सफर का मुंतजिर नहीं ,
जिसको चाहा , वो इस सफर का मुसाफिर नहीं ।। ------ विजयलक्ष्मी
कुछ तकदीरें भी होती है जो नहीं बनती ,,
कुछ लकीरे होती है जो कभी नहीं मिलती ...||
हिस्सा ओ किस्सा कहे कैसे कोई भला
सफर भी होते है जिन्हें मंजिल नहीं मिलती ||
होगा कोई टुटा हुआ सा तारा शायद
वो चमकते हैं मगर रौशनी नहीं मिलती || ------- विजयलक्ष्मी
कभी सत्य को अपनाओ , झूठ से निकलकर || विजयलक्ष्मी
गजल हो या लतीफा क्या खूब हुनर है ,,
वो संगदिल दुनिया का बड़ा बाजीगर है || ---- विजयलक्ष्मी
रोने में भी लुत्फ मिलेगा कैसे किसी को ऐसे ,
क्या मंजूर होंगे दिल के रिश्ते किसी को ऐसे ।। ------ विजयलक्ष्मी
मालूम न था ,कोई है जो सफर का मुंतजिर नहीं ,
जिसको चाहा , वो इस सफर का मुसाफिर नहीं ।। ------ विजयलक्ष्मी
कुछ तकदीरें भी होती है जो नहीं बनती ,,
कुछ लकीरे होती है जो कभी नहीं मिलती ...||
हिस्सा ओ किस्सा कहे कैसे कोई भला
सफर भी होते है जिन्हें मंजिल नहीं मिलती ||
होगा कोई टुटा हुआ सा तारा शायद
वो चमकते हैं मगर रौशनी नहीं मिलती || ------- विजयलक्ष्मी
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