Monday, 25 September 2017

" वो मेरे पापा है ,, जिन्होंने दिन रात एक किया "







" यार कभी तो समझा करो ,
वो मेरे पापा है ,, जिन्होंने दिन रात एक किया
मेरी जरूरतों के लिए
मेंरी इच्छाओं के लिए
पूरी जिन्दगी झोंक दी मेरी कामयाबी के लिए
नहीं किया आराम मेरे वजूद के लिए
दौड़ते हुए बीते सुबह और शाम
मेरी बीमारी के समय
बीएस यही चिंता दीमक की तरह चाटती रही उनकी जिन्दगी को
मैं किसी से पीछे न रह जाऊं ,,
उन्होंने मेरी माँ ही नहीं अपनी माँ को ताकीद किया
मुझे बड़ा बनाने के लिए
मेरी भूख के लिए नई फरमाइशे लादी माँ के ऊपर
दादा जी को भी टोक ही देते थे यदा कदा,,मेरी मंजिलों के लिए
खुद के पास कभी नहीं लगने दिया ,,उन्हें डर था शायद
अपने और मेरे कमजोर पड़ने का
पल पल मेरे जन्म से मेरे पैरों पर खड़ा होने तक
नहीं देखे थकते हुए पाँव
बस हर कोशिश उनकी होती ,,
मेरे वजूद की
हर चिंता उन्हें खाती मेरे अस्तित्व की
हर साँस में जीते रहे वो मेरे लिए बुने स्वप्न को पूरा करने में
उसके लिए उन्होंने अपनी दुनिया भुला दी ,,
और मैं स्वार्थ में जीता हुआ
अपनी तरक्की देखता रहा
आज सोचता हूँ ,,
" पिता होना क्या होता है जब खुद पिता बना "
मेरी जिन्दगी के लिए अपनी जिन्दगी हर बार दांव पर लगाना ,,
अपने विषयमे सोचे बिना सिर्फ मेरे लिए चलते जाना
जिम्मेदारियों में खुद को लगा देना ,,
कभी उफ़ भी करना ,,
आज जाना है मैंने भी पिता होना ||" -------- विजयलक्ष्मी

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