ए दिल न मचल ,सम्भल ,रुसवा हों जायेगा ,
न छेड सरगम , कोई गीत संवर जायेगा .
जिंदगी को किसी की नजर न लगजाये कहीं ,
श्वेत रंग पे बिखरा हर रंग नजर आयेगा .
सम्भल कर निकल हर राह पर नजर है ,
निगाह ए मुहब्बत से भला कैसे बच पायेगा .
शाम ओ सहर संग चलते रहे है सदा ही ,
रंग ए मुहब्बत नजरों पे हरसू नजर जायेगा .
ये दुनिया का मेला है तू इसमें अकेला
सफर जिंदगी का बाकी भी यूँही कट जायेगा .
- विजयलक्ष्मी
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