Wednesday, 27 February 2013

मौन का टूटना ,

मौन का टूटना ,
टूटता है इंसान खुद भी भीतर ,
जिंदगी कितनी राहों से जाती है गुजर ,
अहसासों के सफर की पीड़ा जानता भी वही है मौनव्रती,
शब्द शब्द निखरता है ,पल पल सिहरता है ,
कदम कदम चलता है सहमा सा ...
जब टूटता है मौन टूटता है इंसान भी खुद के भीतर ,
टूटकर जुड़ने की कोशिश नाकाम तो नहीं है खौफ भी है यही सफर का ...
पत्तियां टूटकर डाल से जुड़ती कब है ,
पुष्प गिरकर फूलता कब है ,
टूटता है मौन के साथ बहुत कुछ ...सिहरता है ,
सहमता है हर फलसफा ...
जलकर ,,बिखरकर,,सम्भलने में जिंदगी बीतती है पूरी ,
टूटता है मौन ...बहते है समन्दर के धारे से थमकर बाँध बनकर थामे थे जो किनारे ...
मौन अकेला कब टूटता है ..
टूटता है मौन ,बहुत कुछ टूटकर बिखरता है भीतर भीतर
.- विजयलक्ष्मी

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