Wednesday, 27 February 2013

"इंसान का चरित्र गिर रहा है ,
देश का भविष्य गर्त में जा रहा है ..
वर्तमान सीधा खड़ा नहीं हों पा रहा है ,
बैसाखियाँ चुराई जा रही है ,चलना सम्भव कैसे हों ,
मानुष मन से मनुष्यता घट रही है ,
हर किसी को बस अपनी पड़ी है ,
ऐसे में सरकार की क्या गलती है दुनिया ही ऐसी हों रही है ,
पाखंडी को लगता है हर कोई पाखंड ही खेलेगा ,
पुजारी मंदिर में ,मौलवी फतवे से ,पण्डे घाट पर ,
नेता जी लोकतंत्र की मचान पर ...
कोई दुकान पर कोई किराये के मकान पर,
हर कोई लगा है फेर में निन्यान्ब्बे के फेर में ,
कुछ नहीं बढा ,देश के किसी ग्राफ में वर्द्धि नहीं हुयी ...एक छोड़ कर ..
भ्रष्टाचार की दूकान फल फूल रही है सुंदर तरीके से ,
बगीचा मुस्कुरा रहा है ,भ्रष्टाचार का वृक्ष पुष्पित पल्लवित है ...
उसपर पूर्ण कृपा विद्यमान है सरकार बनी माली की ...
अब लोकतंत्र क्या करेगा ...
देखना है ऊंट किस करवट बैठेगा ....
किस मन्तव्य से उतरेगा युद्ध में चुनावी ...?.
"- विजयलक्ष्मी

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