जिंदगी और मौत का सवाल उठा इक दिन .
ये रजामंदी का नहीं खारों का खेल है ,
रंज न करना कत्ल ए आम में गर घायल हुआ ...
यहाँ तलवार से नहीं बमों से होते खेल हैं ,
चुप रहती है सरकार चीखती है जनता ...
लोकतंत्र के घर में लोकशाही की रेलमपेल है ..
मुझे जिंदगी नहीं मिलेगी मालूम है याद रखना ..
तुने समझा होगा मगर पूरा हुआ खेल है...विजयलक्ष्मी
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