Monday 12 March 2018

तोडना है नींद से रिश्ता ,,

तोडना है नींद से रिश्ता ,,

ख़्वाब दिखा ही जाती है ..
पुरनम से दिन को भी
अमावस बना ही जाती है ||
अब इस अंतरमन की चीख 
समझता ही कौन है ,
पहले चुप थी धरती
आसमां भी हुआ मौन है ?
सुनो,ये जो खत पढ़ते हो
ये आदत न छोडना तुम
छूअन का अहसास भी
खुद को ही कराओगे ||

रहें जिन्दा गर कहीं
दूर होकर भी हम
कहो ,बातों पे हमारी
कैसे कहकहे लगाओगे ||

वो ऊँचे चिनारों में आवाज
मुझको सुनती लगी
बिखरी है आग हर तरफ
कब भला बुझती लगी ?

हिमाकत न हो ख्याल में भी
दीवार उंची रखनी होगी
वो उस छोर टंका है सितारा
उसको ही पकडनी होगी ||
आँख नम है कि बिखरा समन्दर
लहरों को थाम लिया ..
नदी बनकर बही कैसे
कैसे किनारों का नाम लिया ?

रेत के घरौंदे थे सूख गये
हवा के साथ यूँही टूट गये
यार हलकान हुआ क्यूँ तू ...
क्या सांसो के सम्बन्ध रूठ गये ?
एक तस्वीर ताबीर हुई थी
रेशा रेशा रंगी है ..
उतरी नहीं टूटकर भी ..
निशानदेही पर लगती टंगी है ||
------ विजयलक्ष्मी

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