तोडना है नींद से रिश्ता ,,
ख़्वाब दिखा ही जाती है ..
पुरनम से दिन को भी
अमावस बना ही जाती है ||
अब इस अंतरमन की चीख
समझता ही कौन है ,
पहले चुप थी धरती
आसमां भी हुआ मौन है ?
सुनो,ये जो खत पढ़ते हो
ये आदत न छोडना तुम
छूअन का अहसास भी
खुद को ही कराओगे ||
रहें जिन्दा गर कहीं
दूर होकर भी हम
कहो ,बातों पे हमारी
कैसे कहकहे लगाओगे ||
वो ऊँचे चिनारों में आवाज
मुझको सुनती लगी
बिखरी है आग हर तरफ
कब भला बुझती लगी ?
हिमाकत न हो ख्याल में भी
दीवार उंची रखनी होगी
वो उस छोर टंका है सितारा
उसको ही पकडनी होगी ||
आँख नम है कि बिखरा समन्दर
लहरों को थाम लिया ..
नदी बनकर बही कैसे
कैसे किनारों का नाम लिया ?
रेत के घरौंदे थे सूख गये
हवा के साथ यूँही टूट गये
यार हलकान हुआ क्यूँ तू ...
क्या सांसो के सम्बन्ध रूठ गये ?
एक तस्वीर ताबीर हुई थी
रेशा रेशा रंगी है ..
उतरी नहीं टूटकर भी ..
निशानदेही पर लगती टंगी है ||
------ विजयलक्ष्मी
बहुत भावपूर्ण
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