मन में कष्ट ज्यादा है या ग्लानी या अफ़सोस है रंग ए राजनीति देखकर
आखिर किसके लिए यहाँ खड़ा है वो इन्सान को मौत की देहलीज फेंककर
एक जान की कीमत पर एक रैली की ख्वाहिश से जिन्दगी शुरू हो जिसकी
सोचकर देखना हकीकत उस दगाबाज की
कोई धर्म के नाम पर कोई कर्म के नाम पर ..
लेकिन ...
ये किस सत्ता की भूख
उठी न जिसको हूक
निगल गया एक इंसान को खड़ा खड़ा
कितना तमाशा और
कितने जीवन और
कितनी भूख और
कितने सत्ता के गलियारे और
करने होंगे कितने भगवान के प्यारे और
क्या फिर भी मिटेगी भूख
खुद को सबसे अलग दिखाती हूक
खुद को इन्सान कहते तुम्हे लज्जा न आएगी
आज धरती दिवस के दिन जब ये गाथा दोहराई जाएगी
आज नहीं सदियों तक तेरी गायी जाएगी
एक मुख्यमंत्री के सामने ..पृथ्वी दिवस पर
उसी पृथ्वी के लाल की भेंट चढाने वाले में तेरी गिनती आएगी
इतिहास तेरे स्वार्थ को मापेगा ,,
सोया हुआ है जो इन्सान कभी तो जागेगा
तुझसे तेरे बाद भी हिसाब मांगेगा
इन्सान के दर्द को काश तू पहचानता
अरे ओ दिल्ली के मुख्यमंत्री तभी तो हर कोई तुझे इंसान मानता
तुम होंगे किसी के लिए देशभक्त
आज तुम्हारी सोच से भी खौलता है रक्त
कैसे तुझे भारत का कहूँ पूत
कलंकित किया आज देश को जैसे करता है कोई कपूत
फर्जीवाड़े की कोई तो सीमा होती होगी शायद ,,,
किन्तु राजनीति और स्वार्थ के आगे सब निरापद | ---------- विजयलक्ष्मी
आखिर किसके लिए यहाँ खड़ा है वो इन्सान को मौत की देहलीज फेंककर
एक जान की कीमत पर एक रैली की ख्वाहिश से जिन्दगी शुरू हो जिसकी
सोचकर देखना हकीकत उस दगाबाज की
कोई धर्म के नाम पर कोई कर्म के नाम पर ..
लेकिन ...
ये किस सत्ता की भूख
उठी न जिसको हूक
निगल गया एक इंसान को खड़ा खड़ा
कितना तमाशा और
कितने जीवन और
कितनी भूख और
कितने सत्ता के गलियारे और
करने होंगे कितने भगवान के प्यारे और
क्या फिर भी मिटेगी भूख
खुद को सबसे अलग दिखाती हूक
खुद को इन्सान कहते तुम्हे लज्जा न आएगी
आज धरती दिवस के दिन जब ये गाथा दोहराई जाएगी
आज नहीं सदियों तक तेरी गायी जाएगी
एक मुख्यमंत्री के सामने ..पृथ्वी दिवस पर
उसी पृथ्वी के लाल की भेंट चढाने वाले में तेरी गिनती आएगी
इतिहास तेरे स्वार्थ को मापेगा ,,
सोया हुआ है जो इन्सान कभी तो जागेगा
तुझसे तेरे बाद भी हिसाब मांगेगा
इन्सान के दर्द को काश तू पहचानता
अरे ओ दिल्ली के मुख्यमंत्री तभी तो हर कोई तुझे इंसान मानता
तुम होंगे किसी के लिए देशभक्त
आज तुम्हारी सोच से भी खौलता है रक्त
कैसे तुझे भारत का कहूँ पूत
कलंकित किया आज देश को जैसे करता है कोई कपूत
फर्जीवाड़े की कोई तो सीमा होती होगी शायद ,,,
किन्तु राजनीति और स्वार्थ के आगे सब निरापद | ---------- विजयलक्ष्मी
बहुत कष्ट और अफ़सोस (महादुःख में और हताश हूँ आज सत्ता के प्यार से )हुआ ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री पद पर देखकर |
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