पैसों की झिकझिक रिक्शा वालो से कभी नोटों की झिकझिक ओटो वालों से
न कार के किराए की मारामारी सुनी हमने न झगड़ा देखा होटल वालों से
नहीं मरता नेता का बेटा कभी सरहद पर वतन की
खेत में झुलसता किसान सूरज में सीना ताने खडा लाल उसी का मरने वालों में
हर बार बलि चढ जाता है सियासतदानों की सियासतदारी में
हे धरतीपुत्रो, उठो खडे होकर मागों हक ,कुचल सत्ता के भोगने वालों से
--------- विजयलक्ष्मी
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