Monday 4 July 2016

" " आज ईद मुबारक कहने का मन नहीं है हमारा ...क्यूंकि ..."

" पूछना था इक सवाल ..उपर वाले को इन्सान ने कब धार्मिक बनाया ..
किसी एक का नहीं है ,, " इश्वर एक ही है"मुझे तो यही था पढाया ..
कोई हिन्दू बना बैठा कोई मुस्लिम कोई क्रिश्चन कहता है 
ये भी तो कहो इश्वर ने खतना कब और किस दिन करवाया ..
सच बताना ..मुझे धर्म का बड़ा होना स्वीकार तभी होगा ..
किसने बम-बंदूक निहत्थों पर उठाना किस ईश्वर ने सिखाया ,,
टीवी पर चीख रहा था कोई मुसलमानों तुम्हे आतंकी होना पड़ेगा
फिर आतंक का कोई धर्म नहीं होता ये झूठ क्यूँ किसने फैलाया
यदि ईमान के पक्के हो मुसलसल इन्सान हो ..कहो दरार को क्यूँकर बढ़ाया
चोराहे पर किया नंगा ..जिसे घर की देहलीज में रखना था
उसने इंसानी दी इंसान ने उसी को बाँट खाया ..
चीखने से मुसलसल मिलता यदि खुदा ... चीखो कि आसमान गिर जाये
चीखो इतना जोर से धरती की थर्राने लगे काया ...
इंसानियत बेचकर जमीर को कूटकर जहर न मिलाओ ..
न हो कहीं मिल जाए उपर वाला पूछ बैठो ...ये कौन से धर्म के वस्त्र पहन आया
जा लौट हमे नहीं सुननी हमे जातियां और धर्म प्यारे हुए इसकदर ...
मार डालेंगे तुझे भी ...तू अगर काफ़िर की पोशाक में आया
 " ---- विजयलक्ष्मी



आज ईद मुबारक कहने का मन नहीं है हमारा ...क्यूंकि ...
लहू में लथपथ है जमी इन्सान के ,,
ईमान जीते जी ही मर गया ..
कोई यजीद को जीता है यहाँ ..
कोई मस्जिद तोड़ कहता है इस्लाम मर गया ||
क्यूँ नाम रखते हो चाँद को अमन का कहकर
उनसे तो पूछा होता कभी पलटकर
सैनिको पर क्यूँ फेंकते हो पत्थर ...
जबकि मरते मरते भी वो जान वतन के नाम कर गया ||
ईद आ गयी लेकिन ...हामिद नहीं पहुंचा ...चिमटे के बिना बूढी दादी की अंगुलियाँ आज भी जल रही हैं ....उस पर संगीनों से उगलती आग का साया ... उस पर ईद का बाजार और ईदी में क्या मिलेगा सबको बस यही इन्तजार ...क्या अमन चैन मिलेगा ....या .. बस रमजान के दिनों के बम-विस्फोट ? " ----- विजयलक्ष्मी


" तुम खुदा से मांगों तुम्हारी जान बख्श दे शायद ,,
मुझे मेरे ईश्वर पर पूरा भरोसा है ...
बंदूक की गोली इस देह को मिटा सकती है 
मेरे जिन्दा जमीर से हारेगी हर बार 
जान की खैर को आयतों का फाहा रखो तुम 
तुम बिकाऊ ठहरे ...
कितने मारोगे कुरआन के नाम पर ..
अफ़सोस कुरआन के मानने वाले जाने इन्सान कब बनेंगे
क्यूंकि अख़बार में छपे हालात कहते हैं ...
वोटो की जमात के हाथ सब बिक चुके हैं
ये नेता ,, ये इन्सान से दीखते पशु ..
इंसानियत मर रही है लम्हा लम्हा
अजब खेल है मौत का ..
कोई फतवा नहीं मांगता आतंकवाद के खिलाफ ,,
ये कैसी विडम्बना है औरत के नाम पर फतवा
शिक्षा के विरोध में फतवा
संगीत के स्वरों पर पहरेदार है फतवा
बीवी को माँ मानने का फतवा
बीवी को काट खाने का फतवा
नौ बरस की नादाँ से निकाहनामे का फतवा
खून से ब्याह रचाने का फतवा
नहीं आता तोखंजर चाक़ू का फतवा
नहीं आता तो गाय माता का फतवा
नहीं आता तो बम -बंदूक पर फतवा
नहीं आता तो बच्चो की गिनती का फतवा
नहींआता तो राष्ट्रप्रेम का फतवा
नहीं आता तो अमन पसन्दगी का फतवा
नहीं आता तो बस इंसानी ईमान का फतवा
" --------- विजयलक्ष्मी

1 comment:

  1. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 06 जुलाई 2016 को लिंक की गई है............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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