Wednesday 27 April 2016

हे गाँधी तुम महान ,,!!!!



हे गाँधी तुम महान ,,
बहुत बहुत महान ,,कोई दूसरा हो नहीं सकता ऐसा
हो सके भी तो नहीं चाहिए हमे दूसरा गाँधी ,,
जिसके स्वार्थ बेल पर ...फांसी चढ़े हो भगतसिंह..
हे गाँधी तुम दुसरे तीसरे चौथे कितने भी हो सकते हो ,,
शहीद ए आजम एक ही है और रहेगा ,,
तुम्हारा क्या एक और पाकिस्तान बनवा सकते हो भारत को बाँट,,
तुम्हारे गिरोह में कितने ढोंगी होंगे ..
जिन्होंने स्वार्थ के वशीभूत तुम्हारे कदमों को पूजा ..
सुभाषचंद्र बोस एक ही रहेंगे जिन्होंने निर्लिप्त हो तज दिया था तुम्हे,,
आजादी की एसी अलख जगाई तुमने उन्ही को गिरवी रख दिया ,,
रच दिया मौत का तांडव तुम्हारे ही शिष्यों ने ,,
कभी सुभाष के खिलाफ ..कभी मुखबिरी चंद्रशेखर की ..
हे गाँधी तुम कैसे राष्ट्र-पिता हो ..
टुकड़े टुकड़े किये अपने घर के धर्म के नाम ,,
ये कैसा पुत्रवत प्रेम था तुम्हारा ..
एक नेहरु के स्वार्थ पर तुमने पूरे राष्ट्र को वाऱा ..
तुम्हारी अहिंसा की परिभाषा में फांसी हिंसा नहीं है ,,
ब्रिटेन आबाद रहे अहम था भारत की आजादी से,,
हे गाँधी तुम कैसे अगुआ थे स्वाधीनता संग्राम के
सावरकर को कालापानी की जेल हुई ... और तुमने चक्की भी नहीं चलाई
तुमने नमक हाथ में लिया और कानून टूट गये ...
कितने शहीदों को आतंकी कहकर सर कलम हुआ तुम्हारी चुप्पी में
विदेशियों के लिए तुम हिंदुस्तान में आन्दोलन बंद करते मिले .
दर्द की लकीरें खींचते रहे ,, हम हिन्दुतानियों केदिलों पर
हे गाँधी तुम सत्य के पुजारी थे अगर
काश्मीर को झगड़े की जड़ नहीं बनने देते
लोह पुरुष पटेल को अध्यक्षता के प्रधानमन्त्री पदासीन करते
बाघा जतिन से लज्जित नहीं ... भाव श्रद्धांजली देते
निज ब्रह्मचर्य के लिए औरत के साथ मजाक नहीं करते
पत्नी को चांटा और प्रेम पूर्ण रात्रि नग्न तन ब्रह्मचर्य नहीं बघारते
हे गांधी .. तुमको बापू कहा अज्ञान था
तुमने रिश्तों को लजाया स्व की खातिर किसे गुमान था
नहीं सोचा कभी मेरा भारत तुम्हारे कारण भी लहुलुहान था 

सालता है आज भी शहीदों को नीचा दिखाने वाले नेहरु पर नेह बरसना
हाँ ,,एक बार तुमने विदेशी कपड़ो की होलिका जलाई थी..
लेकिन तुम्हारे प्यारे नेहरु के कपड़ो की विदेश में ही होती धुलाई थी
हे गांधी तुम हो सकते हो बापू ... किन्तु राष्ट्रपिता नहीं
ये राष्ट्र सिर्फ तुम्हारा नहीं न कांग्रेस का है ...हमारा भी है ,,
हमारे पुरखों ने सर नहीं झुकाया .. न खौफ खाया
अपने वर्चस्व को बचाया .. किसी के तलुए नहीं चाटे
कभी सिंधिया सा देशद्रोह नहीं किया
कभी नेहरु सी मुखबिरी नहीं की
इसीलिए न हम शादीलाल की तर्ज पर सर हुए ..न दलाली खायी
स्वतन्त्रता में हर देशवासी का हिस्सा है ..
सत्ता किसी की बपौती नहीं
हे गांधी .. तुमने हरिजन कहा किन्तु उन्हें ईश्वरीय रूप न दिया
वैष्णव जन तो बने किन्तु हेय बना दिया ...तुमने |
|------- विजयलक्ष्मी

2 comments:

  1. कविता घटिया सोच उससे भी ज्यादा घटिया

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  2. कविता घटिया सोच उससे भी ज्यादा घटिया

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