" जयहिंद !! ये शब्द नहीं इक जज्बा है ,
इस जज्बे पर इक जज्बात का कब्जा है
देने वाला अमर रहेगा असली नेता वही रहेगा
झुकेगी गर्दन सम्मान में बार बार जयहिंद कहेगा |"
इस जज्बे पर इक जज्बात का कब्जा है
देने वाला अमर रहेगा असली नेता वही रहेगा
झुकेगी गर्दन सम्मान में बार बार जयहिंद कहेगा |"
-- विजयलक्ष्मी
" दर्द जब जब बिखरा
हंसता मिला जमाना
बरसते थे आंसू
औ खुदगर्जी का मौसम
रंगबिरंगे इंसा
जलते हुए इंसानों ने लाज की बोली लगाई
बेमोल अहसास बिके बेभाव
संगीने छोटी पड़ी
बम खेल तमाशे का साज़-ओ-सामान भर
शब्दों पर कुत्तो से बदतर लड़ती इंसानी कठपुतली
इन्सान जाने कहाँ खो गये
और इंसानियत लापता
जिन्दा लाशे मिली औ चीखते हुए मुर्दे
जलते हुए इंसानों ने लाज की बोली लगाई
बिकती मिली औरते ..बेजार हुए बाजार
चौराहे दिखे नंगे ... और सभ्यता लाचार
बहुत बेरुखी से बिखरी थी जिन्दगी ..
माँ को माँ कहना हुआ दरिंदगी
कुछ बिके हुए ईमान औ पैगाम में
कुछ को वफा दिखी फिरकापरस्ती के नाम में
कुछ खैरमकदम के बने पैरोकार
कुछ को मगर जिन्दगी लगी बेजार ..
स्वार्थ की लगाम नकेल कस रही रही ,,
दुनिया सब तमाशा देखकर हंस रही थी ,
जिन्हें वतन नहीं प्यारा ...भला क्यूँ लगाये नारा ,,
वो भगतसिंह नहीं है न वो सुभाष प्यारा ,,
वो आजाद कैसे बनेगे जिन्हें जयहिंद नहीं सुहाता ..
गद्दार कहूँ बुरा कैसे ... ?
जिन्हें नहीं प्यारी भारत माता" --- विजयलक्ष्मी
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