प्रसव पीड़ा ...अस्पताल ........और एक खबर का इन्तजार...बहुत मन्नत के बाद भी इच्छा थी न हो बेटा ... अगर ..... ऐसा ही होना है हर बिटिया को गर कोख में ही रोना है फैसले की हकदार कहते हो चौराहे पर खड़े होकर ...भाषण देते हो नारी के उत्थान के ,,,लेकिन घर में उसे धोंचते हो ......आखिर.... आदमी देहलीज के बाहर और भीतर बदल कैसे जाते हैं |....... नहीं समझ में आया आजतक ,, चार बेटियों को खो चुकी माँ की पीड़ा बढ़ गयी कई गुना | ----- विजयलक्ष्मी
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स्त्री ..जल रही
तप रही है ..
धधक रही है अन्तस् में ,,
खड़ी है ,,
हर पल परीक्षा के देहलीज पर ,,
सुरक्षा किससे भला ..
करता भी कौन है ..
सारे पुरुष राम है ..तो
रावण सा व्यवहार क्यूँ...
क्या सारी ही सूर्पनखा है यहाँ ?
कोई बताये ...
" सभ्य समाज में होता है बलात्कार क्यूँ ?"
सडक पर
बस में
कार में
दोस्ती में
अँधेरे में
नौकरी के घेरे में
विश्वास में
क्या देह से जुदा नेह नहीं कहीं ?
और जब स्व की तरक्की के लिए किया जाता है .." इस्तेमाल "
रिश्तों की आड़ में ..
तब उसका अस्तित्व क्या है अन्नपूर्णा या धनपूर्णा || "
तप रही है ..
धधक रही है अन्तस् में ,,
खड़ी है ,,
हर पल परीक्षा के देहलीज पर ,,
सुरक्षा किससे भला ..
करता भी कौन है ..
सारे पुरुष राम है ..तो
रावण सा व्यवहार क्यूँ...
क्या सारी ही सूर्पनखा है यहाँ ?
कोई बताये ...
" सभ्य समाज में होता है बलात्कार क्यूँ ?"
सडक पर
बस में
कार में
दोस्ती में
अँधेरे में
नौकरी के घेरे में
विश्वास में
क्या देह से जुदा नेह नहीं कहीं ?
और जब स्व की तरक्की के लिए किया जाता है .." इस्तेमाल "
रिश्तों की आड़ में ..
तब उसका अस्तित्व क्या है अन्नपूर्णा या धनपूर्णा || "
------- विजयलक्ष्मी
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