2.
" तुम नहीं हो ,मैं भी कहाँ हूँ,,
देह मुर्दा सी , अब जहाँ हूँ ,,
काश तुम होते तो ..
जिन्दगी होती जिन्दा सी ..
पत्थरों का शहर हैं मैं जहाँ हूँ ,,
खार राहों में पड़े है सफर के
मौत के सन्नाटे बड़े हैं सफर में
जिन्दगी को हलाहल कहूँ कैसे
एक अमृत चख चुके हैं सफर पे
और सुर बजने लगे हैं ,,
पाँव मेहँदी सजने चले हैं
नाम लेकर अब तुम्हारा ..
जख्म बन चुके सहारा ..
और मंजर यादों का लिए ,,
हाथ खंजर ख्वाबों के लिए ,,
रस्ते में टुकड़े टुकड़े अहसास बिखरे
बीज खलिहान में बदरा को अखरे ,,
आखर आखर मुखबिरी करता था मिला
देशप्रेम का चला जब जब सिलसिला
वो तिरंगा ,, लहर उठा ..
आसमा पर फहर उठा..
दुश्मन भी ठहर गया,,
जब सपूत गहर गया ,,
रंग लहू को किया
तन पूरा रंग लिया
मन में अंगार जल रहे..
राह वतन की चल रहे ..
इक बुलंद आवाज में,,
ह्रदय धडकन के साज में
गूंजते सुर मिले ... जयहिंद जयहिंद !!" --- विजयलक्ष्मी
1.
" आओ शब्दों में अहसास पिरोकर अंतर्मन के ,,
खेतो में उगी भूख को मार डाले ,, मौत पर बरसेगा जल कोरो से
किसान की चीखों से गूंजेगा आसमां कबतक ..
वक्त के दर्पण चुभाते हैं टुकड़े कांच के कदमों तले ,,
दर्द की नदिया में गोते लगाते शहीदों के नौनिहाल
बूढ़े पिता की आँख का नूर सरहद पर चढ़ चला..
किसने कब पूछा प्रिया से खेलता हूँ मौत से
जिन्दगी की सौत से ... गर हार जाऊं कभी ...
तुम आंसूओं को थाम लेना पलक की कोर पर
और सिखाना मत कभी नेता बनना मेरे छौनों को गौर कर
जिन्दगी को खिलौना बना माटी का संगीनों से झूलते चले
वतन की माटी में खुद को रोलते चले
जिन्हें तिरंगे की आन प्यारी ,, गोलियों से डरते कब हैं,,
पूछो औलादों को नेता सरहद पर भेजते कब हैं ,,
देश को लूटने वालों की श्रेणी में हैं देशद्रोहियों की तरफदारी में खड़े,,
छेद करते हैं उसी थाली में जिसे लिए रोटी की खातिर है खड़े
ये अंधकूप सी भूख खेल झूठ का खेलती है ,,
मादरे वतन को बर्बादी की तरफ ठेलती है ,,
सरहद पर मालूम दुश्मन आगे ही खड़ा
भीतरघाती से बचना मुश्किल जो टुकड़े करने पर अड़ा
गैन्ग्रियोन के डर से टाँगे कटती घोड़े की ,,
बख्शे कैसे बतलाये कोई जिन्होंने गद्दारी चादर ओढे थी " ---- विजयलक्ष्मी
जय मां हाटेशवरी...
ReplyDeleteआपने लिखा...
कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये दिनांक 20/03/2016 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
चर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
आप भी आयेगा....
धन्यवाद...