कलम से..
Thursday, 29 October 2015
" मुआवजे भी मनमानी की निशानी हो गये हैं "
"
सुना है समाचार भी सेकुलर हो गये हैं ,
सेकुलर के अर्थ लेकिन मौन हो गये हैं .
हर तरफ अजब अजब मंजर हो गये हैं
अपनों के हाथ में भी अब खंजर हो गये हैं
कहने को खुद में दरियादिल हो गये हैं
सबकुछ गंवा शहीद कातिल हो गये हैं
गठबन्धनों की कहानी में चुनाव हो गये हैं
ग्रंथियां पाल मन के बिखराव हो गये हैं
मुआवजे भी मनमानी की निशानी हो गये हैं ,
सरकारी रहम औ करम की कहानी हो गये हैं
" ---- विजयलक्ष्मी
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment