जय जवान | जयहिन्द |
ए काश तुम समझते, सरहद के सैनिक की पीड़ा कितनी मर्मान्तक होती है ,
चैन औ अमन वतन का, अम्मा ,बाबा और बच्चों की चिंता कितनी जीवन्तक होती है
वो खेत रहे खुद को रण में , फौजे दुश्मन की कितनी दुर्दान्तक होती है
राखी सिंदूर कही बिखरा लहू छिटकते मंगलसुत्र गले से कितनी पीड़ान्तक होती हैं
नजरभर ममता की इस मूरत को देखो जिसने लाल को हंसकर विदा किया
खेत रहे ललनाओ की आँखों के सितारों के सपनो की स्याही कितनी आक्रान्तक होती हैं
लाशों की सियासत छोड़ दो तुम, वतन पर मिटने वालो की डगर ही धर्मान्तक होती हैं
हर अध्यात्म नतमस्तक है उनके आगे ...वही राह समाज के लिए अंतिम वेदान्तक होती हैं | --- विजयलक्ष्मी
ए काश तुम समझते, सरहद के सैनिक की पीड़ा कितनी मर्मान्तक होती है ,
चैन औ अमन वतन का, अम्मा ,बाबा और बच्चों की चिंता कितनी जीवन्तक होती है
वो खेत रहे खुद को रण में , फौजे दुश्मन की कितनी दुर्दान्तक होती है
राखी सिंदूर कही बिखरा लहू छिटकते मंगलसुत्र गले से कितनी पीड़ान्तक होती हैं
नजरभर ममता की इस मूरत को देखो जिसने लाल को हंसकर विदा किया
खेत रहे ललनाओ की आँखों के सितारों के सपनो की स्याही कितनी आक्रान्तक होती हैं
लाशों की सियासत छोड़ दो तुम, वतन पर मिटने वालो की डगर ही धर्मान्तक होती हैं
हर अध्यात्म नतमस्तक है उनके आगे ...वही राह समाज के लिए अंतिम वेदान्तक होती हैं | --- विजयलक्ष्मी
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