" तुम आइना हो जिसे देखकर संवरते हैं
छनक कर टूट न जाओ छूने से डरते हैं ||
एतबार है इतना सीरत खुदाई हो जैसे ,
गुरुर सर न चढ़ जाये कहने से डरते हैं ||
डर जमाने से कहूँ , हमे खुद से लगता है
अपना कहूँ ख्वाहिश थी खोने से डरते हैं ||
मेरी तन्हाई, मेरी रूह पर असर दीखता है
ठहरा है नाम भीतर, रुसवाई से डरते हैं ||
तुम्हे कृष्ण मान मीरा हो जाती हूँ अक्सर
मन वीणा का राग तुम्ही,गाने से डरते हैं ||"
---- विजयलक्ष्मी
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