और मुस्काती हूँ बैठ ख्वाब के हिंडोले मैं ,,
रच बस मन भीतर पुष्पित रगों के झिन्गोले में | ---------- विजयलक्ष्मी
इश्क औ गम का रिश्ता भला रिसता क्यूँ हैं ,,
मुस्कुराकर इश्क की चक्की में पिसता क्यूँ है || --- विजयलक्ष्मी
जीना सीखने के बाद भी आहत आहट रुला जाती है ,,
जिन्दगी अहसास के फूल पलको पर खिला जाती है ।।---- विजयलक्ष्मी
नम मौसम को बदलती है उमड़ते अहसास की गर्म चादर ,,
जिसे ओढकर अक्सर मातम भी खुशियों का राग सुनाता है।। ------- विजयलक्ष्मी
रच बस मन भीतर पुष्पित रगों के झिन्गोले में | ---------- विजयलक्ष्मी
इश्क औ गम का रिश्ता भला रिसता क्यूँ हैं ,,
मुस्कुराकर इश्क की चक्की में पिसता क्यूँ है || --- विजयलक्ष्मी
जीना सीखने के बाद भी आहत आहट रुला जाती है ,,
जिन्दगी अहसास के फूल पलको पर खिला जाती है ।।---- विजयलक्ष्मी
नम मौसम को बदलती है उमड़ते अहसास की गर्म चादर ,,
जिसे ओढकर अक्सर मातम भी खुशियों का राग सुनाता है।। ------- विजयलक्ष्मी
आवश्यक सूचना :
ReplyDeleteसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html