Thursday, 31 January 2019

और मुस्काती हूँ बैठ

और मुस्काती हूँ बैठ ख्वाब के हिंडोले मैं ,,
रच बस मन भीतर पुष्पित रगों के झिन्गोले में | ----------  विजयलक्ष्मी




इश्क औ गम का रिश्ता भला रिसता क्यूँ हैं ,,
मुस्कुराकर इश्क की चक्की में पिसता क्यूँ है || --- विजयलक्ष्मी




जीना सीखने के बाद भी आहत आहट रुला जाती है ,,
जिन्दगी अहसास के फूल पलको पर खिला जाती है ।।---- विजयलक्ष्मी




नम मौसम को बदलती है उमड़ते अहसास की गर्म चादर ,,
जिसे ओढकर अक्सर मातम भी खुशियों का राग सुनाता है।। ------- विजयलक्ष्मी

1 comment:

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